20 दिसंबर 2018- आगरा, उत्तरप्रदेश में 15 साल की दलित लड़की संजली को जिंदा जलाया गया।

5 अक्टूबर 2018- झुंझुनूं, राजस्थान में 15 साल की दलित लड़की जलाया गया। वो भी सिर्फ इसलिए क्योंकि वो बच्ची पढ़-लिख कर आगे बढ़ने के सपने देख रही थी।

30 जुलाई 2018- भदोही, उत्तरप्रदेश में एक 17 साल की मुस्लिम दलित लड़की को छेड़छाड़ का विरोध करने के कारण जिंदा जला दिया गया।


8 मई 2018- आजमगढ़, उत्तरप्रदेश में 16 साल की दलित लड़की दीपा को रेप का विरोध करने के कारण जिंदा जला दिया गया।

14 अप्रैल 2018- कानपुर देहात,उत्तरप्रदेश में 16 साल की दलित लड़की निधि दोहरे को हैंडपंप से पानी भरने के विवाद को लेकर सवर्णों ने सरेआम जिंदा फूँक दिया।

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28 मार्च 2018-हसनगंज, उन्नाव,उत्तरप्रदेश में 19 साल की दलित लड़की का बलात्कार करने के बाद उसे ज़िंदा जला दिया गया।

10 मार्च 2018- बलिया, उत्तरप्रदेश में 45 साल की दलित महिला को जिंदा जला कर मार दिया गया क्योंकि महिला साहूकार का ब्याज समय पर नहीं दे सकी थी और उसकी अनुचित माँगों को मानने से इंकार कर रही थी।

23 फरवरी 2018- उन्नाव, उत्तरप्रदेश में 18 साल की दलित लड़की मोनी को जातिगत विद्वेष के चलते जिंदा जला दिया गया।

11 फरवरी 2018- राजगढ़, मध्यप्रदेश में रेप का विरोध करने के कारण 12 साल की दलित बच्ची को जला दिया गया।

11 जून 2018- कटिहार,बिहार में एक महादलित परिवार को जातिगत द्वेष के चलते झोपड़ी में बांध कर जिंदा जला दिया गया। छोटे-छोटे बच्चे तक नहीं बख्शे गए।

ये तो सिर्फ दलित लड़कियों को जलाने के वे मामले हैं जो मीडिया रिपोर्ट में सामने आए। ऐसे कई मामले हैं जो रिपोर्ट ही नहीं किये गए। ये मामले एससी-एसटी एक्ट के तहत दर्ज होने के बाद भी किसी आरोपी को सज़ा नहीं हुई।

कुछ मामलों में तो अब तक भी कोई गिरफ्तारी तक नहीं हुई उल्टा पीड़ित परिवार को ही परेशान किया जा रहा। एक-दो नहीं बल्कि एक ही साल 2018 में ही बहुजन समाज ने कई लाशें ढोई हैं।

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झंझोड़िये खुद को, बहुजन समाज को, अपने नेताओं और सरकार को कि 21 सदी में खड़े होकर भी जाति के चलते दलित लड़कियों को किसी घास के गट्ठर की तरह फूँक देने की हिम्मत कैसी हुई?? 

सवाल करिए इस देश की मीडिया, फेमिनिस्ट आंदोलन, लाल सलाम वालों, समाजवादियों से लेकर तार्किकता-प्रगतिशीलता का लबादा ओढ़े लोगों से कि दलित लड़कियों की चीखें आख़िर सुनाई क्यों नहीं दी??

बहुजनों! आपकी चुप्पी के चलते ये सब लगातार हो रहा। लेकिन संजली की मौत आख़िरी हो। इस घटना से दिसंबर क्रांति शुरुआत हो ताकि आपके समाज की अगली बच्ची शिकार न हो। 
रिसर्च:- दीपाली तायड़े ( घटनाओं का ब्यौरा मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित)

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