केरल के कैबिनेट में कहने के लिए तो दो महिलाओं को जरूर मंत्री बनाया गया है लेकिन शैलजा टीचर को शामिल नहीं किया गया है।
उस शैलजा टीचर को जिन्होंने कोरोना काल में केरल के स्वास्थ्य मंत्रालय को पूरे देश में सबसे बेहतर ढ़ंग से संभाला था और जो इस बार सबसे अधिक वोट से चुनाव जीतकर आयी थी।
उनके जैसे योग्य मंत्री का होना भी एक कारण था कि पिछले चालीस वर्षों के बाद पहली बार कोई पार्टी लगातार दूसरी बार सत्ता में वापस लौटी।
वैसे कैबिनेट में नामी-गिरामी पूर्व वित्त मंत्री थॉमस इसाक, उद्योग मंत्री जयराजन और जी सुधाकरन को भी शामिल नहीं किया गया है लेकिन सिर्फ शैलजा टीचर को मंत्री न बनाए जाने के लिए इतनी कबायत करने की क्या जरूरत थी?
कुछ लोगों का तर्क हो सकता है कि शैलजा टीचर को कोई और जबावदेही दी जाएगी तो यही जबावदेही पिनराई विजयन को क्यों नहीं दे दी गई और उनकी जगह शैलजा टीचर को मुख्यमंत्री बना दिया गया?
लेकिन ठहरिए, सीपीआई (एम) हमेशा से यही काम करती आ रही है। थोड़ा सा दिमाग पर जोर डालिए, गौरीम्मा, जो पिछले हफ्ते 102 साल की उम्र में गुजरी हैं, सुशीला गोपाल और शैलजा टीचर जैसे सक्षम महिलाओं को जबर्दस्ती रोक दिया जाता है।
हां, हमें एक और बात याद रखने की जरूरत है- पश्चमि बंगाल के तथाकथित 34 वर्षों के महान कम्युनिस्ट शासन काल में सीपीएम एक भी महत्वपूर्ण महिला लीडर तैयार नहीं कर पाई।
क्या सीपीएम के भीतर इतना गहरा पितृसत्ता बैठा हुआ है?
(यह लेख पत्रकार जितेंद्र कुमार की फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है)