
उत्तराखंड में सरकारी भर्ती का घोटाला ऐसा है कि अगर ईमानदारी से जाँच हो जाए तो आधी बीजेपी ख़ाली हो जाएगी। कितने विधायकों और मंत्रियों का इस्तीफ़ा हो जाए।
इस घोटाले को आप इस आधार पर हल्का नहीं कर सकते कि कांग्रेस के राज में हुआ था। बीजेपी के राज में क्यों नहीं बंद कराया गया? घोटाले करने वालों को जेल क्यों नहीं भेजा गया?
इस घोटाले को विधानसभा में कांग्रेस के ही विधायक ने उजागर किया है। किसी पार्टी के रहे हों, घोटाले से नौकरी पाने वालों को निकाला जाना चाहिए और उनसे वेतन का सारा पैसा वसूला जाना चाहिए।
कांग्रेस के राज में घोटाले से नौकरी पाने वाले बीजेपी के राज में बच गए और बीजेपी के राज में घोटाले से नौकरी करने वाले भी बच गए। फिर सत्ता के बदलाव का क्या फ़ायदा होता है?
उत्तराखंड जब बना था तब नए राज्य के सपनों को लेकर कितनी रिपोर्ट की थी। लोग वाक़ई उम्मीद में थे कि नया होगा मगर यहाँ भी वही हो रहा है। सपनों की हत्या कर दी गई।
युवाओं में इन सपनों की समझ नहीं है और न ही इन्हें बचाने की नैतिक शक्ति है। वे मेरी पार्टी तेरी पार्टी से ज़्यादा राजनीति को समझ ही नहीं सकते हैं। नतीजा ख़ुद ही भुगत रहे हैं। आगे भी भुगतेंगे। राजनीति ने उन्हें भी जाल में फँसा दिया है।
तीसरी बात यह है कि बीजेपी धर्म और राष्ट्रवाद की बात करती है। मैं जानना चाहता हूँ कि इसकी राजनीति से क्या राजनीति में कोई अलग क़िस्म का नैतिक अनुशासन आया है?
ऐसा तो लगता नहीं है। अगर आया होता तब फिर हर तरफ़ सच को क्यों दबाया जाता और संघ के प्रचारक से लेकर बीजेपी के नेताओं के रिश्तेदार इस घोटाले का लाभ उठा कर नौकरी पाते? ये लोग भी क्यों सिफ़ारिश करते? इसका मतलब है कि धर्म से राजनीति गंदी हो जाती है मगर साफ़ नहीं होती है।