मोदी सरकार सत्ता से जाने से पहले अपने करीबी उद्योगपतियों पर एक और बड़ा एहसान कर देना चाहती है। सरकार निजी बिजली कंपनियों के 1.77 लाख करोड़ रुपए के कर्ज को जनता से चुकवाना चाहती है। इन कंपनियों में सरकार के करीबी माने जाने वाले गौतम अडानी और अनिल अम्बानी की बिजली कम्पनियाँ भी शामिल हैं।

दरअसल, उर्जा क्षेत्र की कंपनियों पर बैंकों का 1.77 लाख करोड़ रुपए का कर्ज बकाया है जो अब एनपीए में तब्दील हो चुका है। इस मामले में रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (आरबीआई) ने 12 फरवरी 2018, को एक सर्कुलर जारी किया था।

उसके मुताबिक, जिन उद्योगपतियों का बैंक लोन एन.पी.ए में बदल चुका है उन्हें 1 मार्च 2018 से 30 सितम्बर तक का समय लोन चुकाने के लिए दिया गया।

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इस मामले में जब बिजली कम्पनियाँ इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंची तो कोर्ट ने भी मार्च 2018, के अपने फैसले में बिजली कंपनियों को रियायत देने से इंकार कर दिया।

ऊर्जा मंत्री पियूष गोयल भी इन कंपनियों की तरफदारी में आरबीआई से सर्कुलर वापस लेने और कंपनियों को कर्ज चुकाने में रियायत देने की गुज़ारिश कर चुके हैं लेकिन आरबीआई ने ऐसा कुछ भी करने से इंकार कर दिया है।

अब मोदी सरकार ने इसके लिए दूसरा तरीका निकाला है जिस से अब आम जनता को इन उद्योगपतियों के कर्ज का पैसा चुकाना होगा। केंद्र सरकार एक बिजली संशोधन एक्ट लेकर आई है। इसे राज्यों के पास भी विचार और लागू करने के लिए भेज दिया गया है।

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इस बिल में लिखा है क्रॉस सब्सिडी खत्म कर देंगे। डोमेस्टिक कैटेगरी में कम रेट होते हैं। इंडस्ट्रियल घरेलू सब बराबर हो जाएंगे। कोई स्लैब नहीं रहेगा और बिजली का एक रेट हो जाएगा।

दरअसल, किसानों और घरेलु बिजली के लिए सरकार कम यूनिट रेट वसूलती है। वहीं, इंडस्ट्रियल यानि उद्योगों का बिजली यूनिट रेट ज़्यादा होता है। इसे कमर्शियल भी कहा जाता है। लेकिन अगर ये बिल राज्यों द्वारा लागू हो जाता है तो किसानों, घरेलु और इंडस्ट्रियल बिजली रेट बराबर हो जाएँगे।

अगर दिसम्बर में ये एक्ट संसद में पेश होकर शीत सत्र में पास हो जाता है तो गरीब से गरीब व्यक्ति को 7 से 10 रुपए के बीच बिजली यूनिट रेट देना पड़ेगा।

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इससे बिजली कंपनियों की चांदी हो जाएगी। क्योंकि अभी तक आम जनता ज़्यादातर 2 से 4 रुपए के बीच बिजली का यूनिट रेट देती है। केंद्र सरकार के इस कदम पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने भी विरोध जताया है।

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