शिवांगी चौबे
संबित ऐसा लिखता है क्योंकि लोग वही पढ़ना चाहते हैं। हमारे और आपके जैसे बहुत कम ही लोग इस देश में बचे हैं। संबित सिर्फ़ एक व्यक्ति नहीं बल्कि एक पार्टी का प्रवक्ता है और वह सिर्फ़ एक पार्टी नहीं, इस देश की सरकार है। संबित जो भी कहता है लिखता है, वो सीधे-सीधे उसकी पार्टी का स्टैंड होता है। अगर न होता तो शायद संबित पात्रा प्रवक्ता भी न होता। वो थ्री इडियट्स में एक डॉयलॉग था न “बोल वो रहे हैं पर शब्द हमारे हैं।” बिल्कुल वैसे ही ये सरकारी शब्द हैं। ये बहुमत के शब्द हैं।
जिस देश में कुछ ही दिन पहले एक हथिनी और उसके बच्चे की दुःखद मौत पर इतना हाहाकार मचा हो, उसी का एक तीन साल के बच्चे को अपने दादा की लाश पर बैठा देख कर हँसी कैसे छूट सकती है? संबित पात्रा ने उतनी हृदयविदारक तस्वीर पर कैसे “PULITZER LOVERS?” लिख कर पूरे के पूरे कश्मीर की वेदना का मज़ाक बना दिया?
आखिर क्यों? क्यों न्यूज़ चैनल पर रोज़ ये चेहरा दिखता है? क्या संबित पात्रा ने कभी भी कोई काम की बात कही है जो आपको याद हो? बग़ैर “जिहाद” शब्द के उस आदमी से न ट्वीट लिखना हो पाता है और ना ही टीवी पर बोलना। आखिर क्या ऐसी मजबूरी है कि राजदीप सरदेसाई जैसे एंकर संबित पात्रा के ट्वीट के बाद भी उसको अपने शो में बुलाते हैं?
मीडिया अब पत्रकारिता नहीं, बिग बॉस जैसे शो दिखाती है। जो भी बहुमत को अच्छा लगे, जिससे थोड़ा मनोरंजन और थोड़ा ईगो बूस्ट दोनों हो। मज़ाक-मज़ाक करते-करते बात यहाँ तक आ पहुँची है कि संबित पात्रा सच में लोगों का हीरो बन गया है। ऐसा आदमी जिसके सिर्फ़ दिल में ही नहीं बल्कि ज़ुबान पर भी एक तीन साल के बच्चे के लिए नफ़रत हो क्योंकि वो एक मुस्लिम है और कश्मीरी है, वो एक लोकतांत्रिक देश में हीरो कैसे माना जा सकता है? उसके 4.4 मिलियन फॉलोवर कैसे हो सकते हैं? वो हर रात 9 बजे आपके घर कैसे आ सकता है? और कौन इसका जिम्मेदार है?
हम हैं ज़िम्मेदार। हम सब। हम जिसने सबकुछ जानते समझते ऐसी सरकार को सिर्फ़ इसलिए वोट दिया ताकि हम जिससे नफ़रत करते हैं उसको सबक सिखा सकें। हम जिसने वोट नहीं दिया लेकिन अपने बाप के हाथ से रिमोट ले कर टीवी बन्द नहीं किया। हम जो जंग के नाम पर इतराते रहे। हम जिसने सरकार से, सेना से, पुलिस से, पत्रकारों से कभी सवाल नहीं किया। हम जिसने मान लिया कि हम सब हार चुके हैं। हम जिसने अपने घरों में मुसलमानों के ख़िलाफ़ हो रही बहस में अपनी आवाज़ नहीं उठाई। हम जो चीखे नहीं अपने बापों, चाचाओं, भाईयों पर। हम जिसने अपनी माँ और दादियों को धोखे में जीने दिया और मान लेने दिया कि जो वो देख सुन रही हैं, वही सच है। हम जिसने सच जानते हुए भी लिखा नहीं, बोला नहीं, अपने संघी दोस्तों से दोस्ती नहीं तोड़ी।
हम। मैं, आप और हम में से एक-एक।
संबित पात्रा वही कर रहा है जो काम उसको दिया गया है, और बेहद बख़ूबी कर रहा है। हम अपना काम नहीं कर रहे।
(सोशलवाणी: ये लेख शिवांगी चौबे के फेसबुक वॉल से लिया गया है लेख में व्यक्त किए गए विचार उनके निजी हैं)