मौजूदा मोदी सरकार की सबसे अधिक आलोचना विविधता को स्वीकार न करने की वजह से हुई है। 2014 में सरकार बनने की साथ की देश को एकरूपता के सांचे में ढालने का काम शुरू हो गया था। कोई क्या पहनेगा, क्या खाएगा, कैसे रहेगा इन सब का निर्णय मोदी सरकार के मंत्री करने लगे हैं।

ताजा विवाद शुरू हुआ है केंद्रीय पर्यटन राज्य मंत्री के.जे. अल्फोंस के बयान पर। केंद्रीय मंत्री अल्फोंस ने एनडीटीवी के दिए एक इंटरव्यू में कहा कि, विदेशों में विदेशी बिकिनी पहन कर सड़कों पर चलते हैं। जब वे भारत आते हैं तो आप ये उम्मीद करते हैं कि वो हमारे यहां बिकिनी पहन कर न घूमें।

अल्फोंस ने कहा कि आप जहां और जिस देश जाते हैं, आपको वहां की संस्कृति की समझ की भावना होनी चाहिए और आपको उसी तरह से व्यवहार करना चाहिए।

अल्फोंस ने बिकिनी वाले बयान को मजबूत आधार देते हुए आगे कहा कि लैटिन अमेरिका में एक शहर है, जहां महिलाएं बिकिनी में ही घूमती हैं। वहां वह पूरी तरह से स्वीकार्य है। मुझे वहां से कोई दिक्कत नहीं है। मगर जब आप इस देश में आते हैं, तो आपको इस जगह की संस्कृति और परंपरा का सम्मान करना चाहिए। मैं नहीं कह रहा हूं कि जब आप भारत आएं तो साड़ी पहने। नहीं। आप वह कपड़े पहनें जो यहां स्वीकार्य हैं।

कुल मिलाकर केंद्रीय पर्यटन राज्य मंत्री के.जे. अल्फोंस का कहना है कि भारत में विदेशी पर्यटक बिकिनी पहनकर न घूमे। साड़ी नहीं पहना तो कोई दिक्कत नहीं, सलवार सूट, लहंगा, घांघरा ये सब पहन लें, लेकिन बिकिनी नहीं। यानी वैसे कपड़े न पहनों जिसे पहनने के बाद भी शरीर दिखता हो।

जब मंत्री जी विदेशी पर्यटकों के बिकिनी पहनने से इतना नाराज हैं इसका मतलब ये अपने देश की लड़कियों के बिकिनी पहनने के बारे में सोच भी नहीं सकते! ख़ैर इनके सोचने या न सोचने से कोई फर्क नहीं पड़ता। भारत संविधान से चलता है मंत्रीजी के भगवा बयान से नहीं। संविधान ने सबको बोलने, लिखने, पहने, खाने, पीने, रहने की आज़ादी दे रखी है। इनके मना करने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला।

केंद्रीय पर्यटन राज्य मंत्री के. जे. अल्फोंस से ये पूछा जाना चाहिए कि वो कौन सी संस्कृति और परंपरा के आधार पर बिकिनी न पहनने की बात कर रहे हैं? बिकिनी पहनने में दिक्कत क्या है? क्या बिकिनी सिर्फ इसलिए नहीं पहना जाना चाहिए क्योंकि उसे पहनने के बाद भी शरीर का ज्यादातर भाग नंगा दिखता है?

सबसे पहली बात भारतीय संस्कृति और परंपरा विविधताओं से भरा हुआ है, यहाँ कोई एक संस्कृति या कोई एक परंपरा नहीं है। जिस राह पर हम सदियों से चलते आ रहे हैं उसे ही संस्कृति और परंपरा कहते हैं। भारत की संस्कृति में ज्यादातर महिलाएं पूरे बदन को ढकने वाले कपड़े पहने नहीं दिखती। इसके कई उदाहरण किताबो, मुर्तियों, चित्रों मे देखने को मिलता है।

इंसानों के विज्ञान के जानकार यानी एंथ्रोपोलॉजिस्ट मानते हैं कि इंसान ने क़रीब एक लाख सत्तर हज़ार साल पहले, अपने तन को ढंकना शुरू किया था। साड़ी, सलवार सूट, लहंगा, घांघरा, शर्ट, पैंट इन सबका आविस्कार बहुत बाद में हुआ है। तो सिंपल सी बात है कि जब हमारी कथित संस्कृति पनप रही थी तब ज्यादा कपड़ों का अविष्कार हुआ ही नहीं था।

दुनिया में आज भी बहुत से ऐसे इंसान हैं जो कपड़े नहीं पहनते। आज भी भारत के मूलनिवासी यानी आदिवासी समाज में बहुत से लोग कपड़े नहीं पहनते, तो मंत्री जी किस संस्कृति की बात कर रहे हैं।

चलिए अगर इतने तर्क से भी बात समझ ना आयी हो तो देवी-देवताओं का नाम लीजिए शायद कुछ समझ आ जाए। अब बताइए आपने कितने ऐसी देवीयों को देखा है जो पूरा कपड़ा पहने नजर आती हैं?

मंत्री जी, भारत बहुत व्यापक दिमाग (broad minded) लोगों का देश है। इस देश में शिव के लिंग की पूजा होती है, इस देश में देवी के योनी की पूजा होती है, इस देश में योनी से निकलने वाले खून (माहवारी-periods) की पूजा होती है। और आप हैं कि बिकिनी पहनने से नाराज हो जा रहे हैं।

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