मोदी सरकार पर लगातार ये आरोप लग रहा है कि उसने अपने कार्यकाल के आखिरी समय में जनता को लुभाने के लिए ज़रूरत से ज़्यादा पैसा देश के बजट में से खर्च किया है और उसका कोई सकारात्मक परिणाम भी सामने नहीं आ रहा है।

ये आरोप भी लग रहा है कि सरकार अपनी योजनाओं के के विज्ञापन में हज़ारों करोड़ का खर्च चुनावी वर्ष में कर रही है जबकि योजनाओं कामयाब नहीं हुई हैं। गौरतलब है कि वर्ष 2019-20 के बजट को लोकलुभावन बजट कहा गया था। इसी सिलसिले में एक बड़ा खुलासा सामने आया है।

कैग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मोदी सरकार ने 4 लाख करोड़ से ज़्यादा के खर्च और कर्ज को नहीं दिखाया है। कैग ने वर्ष 2018 में ही मोदी सरकार के वित्तीय प्रबंधन पर बड़ा खुलासा किया लेकिन इसे मीडिया कवरेज नहीं दिया गया क्योंकि मीडिया मंदिर-मस्जिद में व्यस्त है।

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कैग की रिपोर्ट के मुताबिक, मोदी सरकार ने चार लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का खर्च और कर्ज यानी उधारी छिपाने का काम किया है। इस धनराशि का जिक्र बजट के दस्तावेजों में नहीं है। सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में इसको लेकर मोदी सरकार की जबर्दस्त खिंचाई की है।

कैग ने कहा है कि ऐसे खर्चों और उधारियों का जिक्र कायदे से बजट में होना चाहिए। इसके चलते सरकार को अधिक ब्याज के रूप में सब्सिडी पर ज्यादा खर्च झेलना पड़ता है। यह तरकीब वित्तीय लिहाज से काफी जोखिमपूर्ण होती है। जब सार्वजनिक उपक्रम लोन चुकता करने में विफल होते हैं तो आखिर में देनदारी सरकार के सिर पर ही आती है।

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कैग ने कहा है कि डिस्क्लोजर स्टेटमेंट के जरिए ऑफ बजट फाइनेंसिंग की धनराशियों का खुलासा होना चाहिए। इसकी बड़े पैमाने पर समीक्षा की जरूरत है। इसका बुरा प्रभाव अब अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है। क्योंकि इस खर्च को ऑफ बजट फाइनेंसिंग के अंतर्गत बजट में नहीं दिखाया गया इसलिए इसे सँभालने के लिए कोई इंतेज़ाम बजट में नहीं किया गया है। इसलिए अब ये अर्थव्यवस्था को दोगुना नुकसान पहुँचाएगा।

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