मोदी सरकार ने सत्ता में एक नए भारत के वादे पर आई। इसलिए ही उसने सत्ता में आने पर कई सपने दिखाएँ और उन्हें नाम दिया। इनमें से ही एक है ‘न्यू इंडिया’ यानी नया भारत।

एक आधुनिक और विकसित भारत। प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में न्यू इंडिया मशहूर हुआ और सड़क से संसद तक सरकार के मंत्रियों तक न्यू इंडिया बनाने का वादा किया। इसके लिए कई योजनाएं भी शुरू की गई।

इसकी सबसे महत्वपूर्ण योजना ‘स्मार्ट सिटी’ रही है जिसके आधार पर नए भारत का सपना जनता को बेंचा गया। इसकी योजना की शुरुआत वर्ष 2015 में हुई थी। अब जब इस सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा कर लिया है तो सवाल बनता है कि ‘गुड गवर्नेंस’ का नारा देने वाली ये सरकार और इसकी स्मार्ट सिटी न्यू इंडिया की तस्वीर में किस हद तक रंग भर पाई है।

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ऐसे में ये कहा जा सकता है कि मोदी सरकार ने स्मार्ट सिटी योजना का एक भी काम पूरा नहीं कर पाई है। ये बात शहरी विकास मंत्रालय के आंकड़ें कहते हैं। शहरी विकास मंत्रालय ने इस योजना से सम्बंधित जानकारी लोकसभा में दी हैं।

एक जनवरी 2019 को लोकसभा में यह जानकारी दी गई कि इस मिशन पर सरकार ने 48,000 करोड़ रुपए ख़र्च करने का लक्ष्य रखा गया था। इसमें से 16,604 करोड़ रुपए आवंटित किए गए और उसमें से भी 3,560 करोड़ रुपए ख़र्च हुए हैं.

यानी जितनी राशि ख़र्च करने का प्रस्ताव किया गया था उसका लगभग 7% हिस्सा ही। ये आंकड़ें योजना के प्रति सरकार उदासीनता को दिखाते हैं। अब अगर योजना के पूरी होने के बात की जाए तो केंद्र सरकार ने 11 दिसंबर 2018, को लोक सभा में इसी मिशन के बाबत जो ज़वाब दिया उसके मुताबिक, अब तक केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने चुने हुए 100 शहरों में 5,151 परियोजनाएं मंज़ूर की हैं। इनमें से 30 नवंबर 2018 तक 1,675 परियोजनाओं पर काम शुरू हुआ है।

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ये कब पूरी होंगी, मंत्रालय के ज़वाब में स्पष्ट नहीं है। मतलब सरकार इस योजना के अंतर्गत चुने गए एक भी काम पूरा नहीं कर पाई है। योजना का सफल होना तो छोड़िए योजना के अंतर्गत चल रही एक तिहाई परियोजनाएं ही अभी शुरू हुई हैं।

योजना के बजट का सिर्फ 7% खर्च और एक भी परियोजना का पूरा ना होने पर अगर मोदी सरकार के रिपोर्ट कार्ड में शून्य नंबर दिये जाए तो ये ज़ियादती नहीं होगी क्योंकि सरकार और उसके काम के आंकड़ें कहीं से इस मामले में गंभीर नहीं प्रतीत होते हैं।

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