मीडिया पिछले पांच साल से ‘हिंदू-मुस्लिम’ ‘हिंदू-मुस्लिम’ की घंटी बजा रही है। सत्ता और कॉरपोरेट से इशारे पर ये काम बड़े पैमाने पर हुआ। मीडिया से गोदी मीडिया बने चैनलों ने हर रोज कई घंटे ‘हिंदू-मुस्लिम’ मुद्दों के इर्द-गिर्द नष्ट किया।

मीडिया की इस मेहनत का कुप्रभाव समाज में लिंचिंग और दंगे जैसी घटनाओं के रूप में देखा गया। नफरत बढ़ी है और सामाजिक सौहार्द कम हुआ है। सत्ता के चाटूकार पत्रकार इसे अपनी उपलब्धि समझ सकते हैं।

लेकिन अफसोस ये उपलब्धि गोदी पत्रकारों को महंगाई और निजीकरण की मार से नहीं बचा सकती। जैसे आम जनता प्राइवेट स्कूलों की लूट से परेशान है, वैसे ही गोदी पत्रकार पर हताश नजर आ रहे हैं।

एबीपी न्यूज के एंकर अनुराग मुस्कान रात 10 बजे ‘घंटी बजाओ’ नाम का शो करते हैं। लेकिन अब एक निजी स्कूल की बढ़ती फीस ने अनुराग मुस्कान की घंटी बजा दी है।

अनुराग ने फी स्लिप की फोटो ट्विटर पर शेयर करते हुए लिखा है ‘बस्तों का बोझ पहले ही क्या कम था जो अब दोगुने ऐनुवल चार्ज का भी बोझ डाल रहे हैं स्कूल। पिछले साल तक एक बार में लिया जाने वाला आठ हज़ार ऐनुवल चार्ज अब सोलह हज़ार करके साल में चार बार वसूला जाएगा। ग्रेटर नौएडा के एक स्कूल की फ़ी स्लिप।’

अनुराग मुस्कान ने अपनी ट्वीट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और यूपी के उप-मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा को भी टैग किया है। अब कमाल की बात ये है कि तीनों में से किसी की तरफ से कोई जवाब नहीं आया है।

अनुराग मुस्कान का झुकाव बीजेपी की तरफ है जो कई मौकों पर झलक जाता है। इनका शो भी सत्ता से कम और विपक्ष से ज्यादा सवाल पूछता है। बावजूद इसके सत्ताधारी दल के नताओं की तरफ से कोई जवाब न आना ‘गोदी पत्रकारों’ की औकात बताता है।

शायद ऐसे ही मौके के लिए यह कहावत लिखी गई थी- ‘अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत’

अर्थात जब सत्ता से सवाल करने का वक्त था तब तो उनके लिए नफरत के खाद से वोट की खेती कर रहे थे। अब जब खुद पर फी का बोझ आया है तो स्कूलों की मनमानी दिख रही है। लेकिन अब क्या फायदा, अब तो नफरत से तैयार हुए वोट की फसल कटने वाली है। इसके लिए गोदी पत्रकारों की जरूरत नहीं है। नफरती नेताओं का भाषण काफी हैं।

अनुराग मुस्कान के इस ट्वीट को आज-तक की एंकर चित्रा त्रिपाठी ने रिट्वीट करते हुए लिखा है ‘प्राइवेट स्कूलों ने लूट मचाकर रखी है। मुझे लगता है इन स्कूलों की फीस का एक दायरा तय किया जाना चाहिये। 10-10 हजार रुपये महीने की फीस, बस के अलग, स्कूलों के महीने के टैन्ट्रम्स अलग. घर पर ट्यूशन फीस अलग. उनका क्या होगा जो मध्यवर्गीय/गरीब हैं?’

चित्रा ने अपनी ट्वीट में नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ को टैग किया है। लेकिन इनके ट्वीट का भी किसी ने जवाब नहीं दिया है। चित्रा त्रिपाठी को कोई बार बीजेपी की दक्षिणपंथी राजनीति से प्रफुल्लित होते देखा गया है। नरेंद्र द्वारा  सवर्ण आरक्षण को लागू करना चित्रा के लिए इतिहास रचना था।

और भी कई मुद्दों पर चित्रा बीजेपी का बचाव करते दिख जाती हैं। कुल मिलाकर इनका भी दक्षिणपंथी झुकाव जग-जाहिर है। हिंदू-मुस्लिम और मंदिर-मस्जिद के मुद्दों पर खूब बहस करती हैं। लेकिन पिछले 4 सालों में शिक्षा के निजीकरण पर गंभीरता से सवाल उठाते नहीं देखा गया। ना ही बड़ी संख्या में बंद हुए सरकारी स्कूलों को लेकर सरकार से सवाल पूछा।

चित्रा त्रिपाठी के ट्वीट को रिट्वीट करते हुए पत्रकार रोहिणी सिंह ने लिखा है ‘अगर TV ऐंकर्स असली मुद्दों पर बात करते ना की हिन्दू मुस्लिम, मार काट, पाकिस्तान पर तो शायद सरकार भी असली मुद्दों पर ध्यान देती। मध्यवर्ग और ग़रीब की तभी याद आती है जब ख़ुद पर बीतती है।’

बता दें कि साल 1968 में कोठारी आयोग ने अनुमान लगाया था कि लोगों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए शिक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 6 प्रतिशत खर्च किया जाना चाहिए। लेकिन पिछली सरकारों की तरह ही मोदी सरकार ने भी कभी शिक्षा पर बजट का 6 प्रतिशत खर्च नहीं किया। उल्टा शिक्षा बजट में जमकर कटौती की।

नवजीवन ने प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले वर्ष के आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया था कि जहां 2013-14 में जीडीपी का 3.1 प्रतिशत हिस्सा शिक्षा (स्कूल शिक्षा व उच्च शिक्षा दोनों मिलाकर) पर खर्च हुआ, वहीं 2017-18 में जीडीपी का मात्र 2.7 प्रतिशत हिस्सा शिक्षा पर खर्च हुआ।

अगर हम जीडीपी के हिस्से के रूप में केवल केंद्र सरकार के शिक्षा पर खर्च को देखें तो 2014-15 में यह हिस्सा 0.55 प्रतिशत था (वास्तविक खर्च) जबकि वर्ष 2018-19 के बजट अनुमान में यह सिमट कर 0.45 प्रतिशत तक पहंच गया है।

केवल केंद्र सरकार के शिक्षा पर खर्च को केंद्र सरकार के बजट के प्रतिशत के रूप में देखा जाए तो 2014-15 के वास्तविक खर्च में यह हिस्सा 4.1 प्रतिशत था, जबकि 2018-19के बजट आवंटन में यह 3.6 प्रतिशत तक सिमट गया।

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