राफेल डील है या घोटाला इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट फिर से सुनवाई करने को तैयार हो गया है। कोर्ट ने मोदी सरकार के ‘विशेषाधिकार’ वाले दावे को खारिज करते हुए राफेल मामले पर दिए गए 3 दस्तावेजों को सबूत के तौर पर पेश किए जाने की मंजूरी दे दी है, जिसे केंद्र की मोदी सरकार ने विशेषाधिकार जताया था।

दरअसल राफेल डील को घोटाला साबित करने में लगे तीन याचिकाकर्ता की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के लिए तैयार हुआ है। जिनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और वकील प्रशांत की मांग थी की राफेल डील मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार की याचिका को रद्द करने की मांग की गई थी।

वहीं मोदी सरकार की तरफ पेश हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल कोर्ट में दलील दी थी कि तीनों याचिकाकर्ताओं ने अपनी समीक्षा याचिका में जिन दस्तावेजों का इस्तेमाल किया है, उन पर सरकार का विशेषाधिकार है।

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जिसपर सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण का कहना था कि क्योंकि राफेल सौदे से जुड़े दस्तावेज जिसपर अटॉर्नी जनरल विशेषाधिकार होने का दावा कर रहें है। वो प्रकशित हो चुका  और पहले से ही सार्वजनिक दायरे में है।

जिसपर मोदी सरकार के वकील अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि कोर्ट कोई भी फैसला लेने से पहले संबंधित विभाग की अनुमति लेना ज़रूरी है जो कोर्ट में पेश नहीं हो सकता है। वेणुगोपाल ने कहा कि  कानून की धारा 123 और सूचना के अधिकार कानून के प्रावधानों का हवाला दिया। उन्होंने कहा था कि राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित दस्तावेज कोई प्रकाशित नहीं कर सकता क्योंकि देश की सुरक्षा सबसे ऊपर है।

कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद कहा कि जो नए दस्तावेज डोमेन में आए हैं, उन आधारों पर मामले में रिव्यू पिटिशन पर सुनवाई होगी। बेंच में सीजेआई के अलावा जस्टिस एस। के। कौल और जस्टिस के। एम। जोसेफ शामिल हैं।

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सुप्रीम कोर्ट अब रिव्यू पिटिशन पर सुनवाई के लिए नई तारीख तय करेगा। राफेल मामले में सुप्रीम कोर्ट को यह तय करना था कि इससे संबंधित डिफेंस के जो दस्तावेज लीक हुए हैं, उस आधार पर रिव्यू पिटिशन की सुनवाई की जाएगी या नहीं।

बता दें कि पिछले साल 2018 14 दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट ने राफेल डील मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को एक प्रकार से क्लीन चिट दे दी थी। तब चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा था कि हम सरकार को 126 विमान खरीदने पर विवश नहीं कर सकते, और यह सही नहीं होगा कि कोर्ट केस के हर पहलू की जांच करे. कीमत की तुलना करना कोर्ट का काम नहीं है।

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