
केंद्र सरकार द्वारा लाए गए किसान विरोधी कृषि कानूनों के खिलाफ किसान संगठनों का विरोध लगातार चल रहा है।
हाल ही में किसान संगठनों ने ऐलान किया है कि 22 जुलाई को वे संसद का घेराव करेंगे। जहां इस वक्त मानसून सत्र चलाया जा रहा है।
आज संसद में विपक्षी दलों द्वारा भी किसानों का मुद्दा उठाया गया था। लेकिन सत्ता पक्ष द्वारा इस मुद्दे पर किसी भी तरह की चर्चा नहीं की जा रही है।
इस मामले में कांग्रेस नेता दीपेंद्र हुड्डा ने मीडिया से बातचीत के दौरान बताया है कि यह बहुत ही दुर्भाग्य की बात है कि कल हमने किसानों के मुद्दे पर तुरंत चर्चा की मांग की थी।
आज भी हमने संसद में इस मुद्दे को उठाने की कोशिश की थी। लेकिन इससे पहले ही सभापति ने इस नोटिस को खारिज कर दिया पूरा। विपक्ष संसद में किसानों के मुद्दे पर एक साथ खड़ा हुआ था।
जैसे ही संसद में किसानों का मुद्दा उठाया गया तो संसद की कार्रवाई को ही स्थगित कर दिया गया। इससे स्पष्ट होता है कि मोदी सरकार अंहकार में डूबी हुई है।
8 महीनों से किसान कृषि कानूनों की वापसी को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। कई किसान अब तक अपनी जान गवा चुके हैं।
मोदी सरकार द्वारा यह कहा जा रहा है कि विपक्ष इस मुद्दे पर नकारात्मक राजनीति कर रहा है। मैं उनसे यह पूछना चाहता हूं कि क्या अगर हम नकरात्मक राजनीति कर रहे हैं। तो सकारात्मक राजनीति क्या है?
क्या देश के किसानों को अपमानित करना, महंगाई बढ़ाना, पत्रकारों की जासूसी करवाया जाना सकारात्मक राजनीति है? अगर हम यह मुद्दे भारत की संसद में नहीं उठाए जाएंगे तो क्या हम आयरलैंड में जाकर इन मुद्दों को उठाएंगे ?
यह भारत देश के आम आदमी की समस्याएं हैं। अगर हम इन मुद्दों को संसद में नहीं उठाएंगे। तो हम कौन से देश की संसद में जाकर ये मुद्दे उठाएं।
वहीँ फोन टेपिंग मामले में कांग्रेस नेता दीपेंद्र हुड्डा ने मोदी सरकार को घेरते हुए कहा है कि अगर भारत के नेताओं पत्रकारों और अधिकारियों के फोन टेप किए गए हैं।
तो यह मोदी सरकार ने करवाए होंगे। अगर यहां की सरकार ने नहीं करवाए तो क्या जिम्बावे की सरकार ने करवाए होंगे?