
कर्नाटक सरकार द्वारा अपने यहाँ स्कूली किताबों में कट्टर हिंदुत्वादी विचारक सावरकर को लेकर कुछ नई जानकारियां जोड़ी गयी हैं। जिसके बाद राज्य सरकार का जमकर लोग खिल्ली उड़ा रहे हैं।
राज्य की बीजेपी सरकार ने कक्षा आठ के सिलेबस में नये संशोधन कर सावरकर की जीवनी से जुड़ी बेबुनियाद तथ्यों को स्कूली सिलेबस में शामिल किया है। जिसमें बताया गया है कि सावरकर जब जेल से तब एक पक्षी पर बैठकर वे देश की यात्रा पर जाते थे।
कर्नाटक सरकार के शिक्षा विभाग द्वारा ऐसे अतार्किक तथ्यों को स्कूल की किताब में जोड़ना कहीं न कहीं देश के इतिहास का मजाक उड़ाने जैसा मालूम पड़ता है।
सावरकर के जीवनी से जुडी अवैज्ञानिक जानकारियों को जोड़ना भाजपा कर्नाटक सरकार के लिए भारी पड़ते दिखाई दे रहा है।
सोशल मीडिया पर लोग जमकर सावरकर और कर्नाटक सरकार की आलोचना कर रहे हैं। समाजवादी पार्टी से एमएलसी सुनील सिंह यादव ने ट्वीट कर लिखा है-
“कर्नाटक के इतिहास की किताबों में पढ़ाया जा रहा है कि सावरकर की सेल में एक बुलबुल थी जिस पर बैठकर वे देश की सैर करते थे। लेकिन भाजपाई इतिहासकार यह लिखना भूल गए कि वही बुलबुल सावरकर का माफ़ीनामा लेकर अंग्रेजों के पास गई थी। अंग्रेजों के मुखबिर जुमला लिख महान बनने में लगे हैं।”
कर्नाटक के इतिहास की किताबों में पढ़ाया जा रहा है कि सावरकर की सेल में एक बुलबुल थी जिस पर बैठकर वे देश की सैर करते थे। लेकिन भाजपाई इतिहासकार यह लिखना भूल गए कि वही बुलबुल सावरकर का माफ़ीनामा लेकर अंग्रेजों के पास गई थी। अंग्रेजों के मुखबिर जुमला लिख महान बनने में लगे हैं।
— Sunil Singh Yadav (@sunilyadv_unnao) August 29, 2022
दरअसल भाजपा कर्नाटक सरकार द्वारा सरकारी स्कूल में कक्षा आठ के इतिहास की किताबों में संशोधन कर जिसमें लिखा है-
“सावरकर जब एक अंग्रेज की मौत के जुर्म में सेलुलर जेल का सज़ा काट रहे थे। और जिस कमरें में उन्हें रखा गया था, उसमें रौशनी आने के लिए एक छोटा सा होल था। जिसमे से एक बुलबुल पक्षी आ जाती थी ,जिसपर बैठ कर सावरकर रोज़ देश की भ्रमण पर निकलते थे।”
यहां सपा नेता सुनील सिंह यादव ने सावरकर के बहाने कर्नाटक सरकार की अंधविश्वासी नीति पर सवाल उठा दिया है।
बता दें की गुलाम भारत में अंग्रेज़ों द्वारा कट्टर हिंदुत्ववादी विचारक सावरकर को सेलुलर जेल में काला पानी कि सज़ा हुई थी। जेल में कुछ महीने ही सज़ा काटने के बाद सावरकर अंग्रेजी हुक़ूमत को चिट्ठियां लिखकर निवेदन करने लगे। चिट्ठी में सावरकार अंग्रेज़ो से माफ़ी मांगते थे कि उन्हें रिहा कर दिया जाए।
सावरकार अपने माफ़ीनामे में स्पष्ट तौर यह स्वीकार करते थे कि वह भारत के स्वतंतत्रा आंदोलन के किसी भी गतिविधि में शामिल नहीं होंगे। और ब्रिटिश प्रशासन के प्रति वफ़ादार रहेंगे।
वहीं अंग्रेज़ो के फूट डालो राज करो निति के भी सावरकर खुलकर पक्षधर रहे हैं। वह उस दौर में जिन्ना की तरह सबसे प्रखर लोगों में थे जो टू नेशन’ थ्योरी को मानते थे।