भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत यातना से संरक्षण एक मूल अधिकार है, लेकिन आंकड़े यह बताने के लिए काफी हैं कि नागरिकों के मूल अधिकार का हनन लगातार हो रहा है।

एनसीआरबी की रिपोर्ट देश में पुलिस की बर्बरता को ज़ाहिर करती है। भारत में पुलिस सुधार को लेकर लंबे समय से बहस चल रही है और हिरासत में होने वाली मौतों का आंकड़ा हर बार ध्यान खींचता है।

केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बताया कि अकेले उत्तर प्रदेश में 2021-22 में हिरासत में कुल 501 मौतें हुईं जबकि इससे पहले यानी 2020-21 में हिरासत में मौत के 451 मामले दर्ज किए गए. यूपी के बाद पश्चिम बंगाल और फिर मध्य प्रदेश का नंबर आता है।

वहीं देश भर में 2021-22 में हिरासत में हुई मौतों का आंकड़ा 2544 है जबकि 2020-21 में यह संख्या 1940 थी,उत्‍तर प्रदेश में पिछले तीन साल में 1,318 लोगों की पुलिस और न्‍याय‍िक हिरासत में मौत हुई है।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग यानी एनएचआरसी की रिपोर्ट के मुताबिक देश भर में साल 2021-22 में न्यायिक हिरासत में 2,152 लोगों की मौत हुई जबकि 155 लोगों की मौत पुलिस कस्टडी में हुई. यानी, हिरासत में हर रोज 6 लोगों की मौत हो रही है।

सुप्रीम कोर्ट ने जेल में बंद अंडरट्रायल कैदियों के मामले में यूपी सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी. 25 जुलाई2022 को दस साल से भी ज्यादा से हिरासत में बंद 853 कैदियों के मामलों की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से कहा था कि यदि वह इनकी रिहाई का फैसला नहीं लेती तो कोर्ट एक साथ सबकी जमानत के आदेश जारी कर देगी।

पिछले साल नवंबर में कासगंज में अल्ताफ नाम के एक युवक की हिरासत में मौत हुई थी. पुलिस ने पहले तो इस मौत को आत्महत्या बताने की कोशिश की लेकिन अल्ताफ के परिजनों ने कासगंज पुलिस पर हत्या का आरोप लगाया. इस मामले में भी पांच पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया.जांच अभी भी जारी है।

उन्‍नाव के बांगरमऊ कस्‍बे में एक 18 साल के युवक की पुलिस हिरासत में मौत का मामाला भी सामने आया था। यूपी पुलिस के दो स‍िपाही कोरोना कर्फ्यू का पालन कराने गए थे और फैज़ल को सब्‍जी का ठेला लगाने के जुर्म में थाने लेकर चले गए थे, पुलिस हिरासत में ही फैज़ल की तबीयत खराब हुई और फिर मौत हो गई। मामले में पुलिस के दो सिपाहियों और एक होम गार्ड पर मुकदमा दर्ज हुआ था।

कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात लालपुर सरैंया गांव में बलवंत सिंह नाम के एक शख्स की पुलिस कस्टडी में हुई मौत से यूपी पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठ रहे हैं, कानपुर देहात में लूट के शक में उठाए गए व्यापारी बलवंत सिंह की पुलिस कस्टडी में मौत हो गई थी।

मृतक बलवंत सिंह के शरीर पर सिर से लेकर पैर तक 22 से ज्यादा चोट के निशान पाए गए. उसके शरीर के हर अंग पर चोट के निशान पाए गए. हालांकि पुलिस अधीक्षक के निर्देश पर आरोपी पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया गया था।

इस मामले को लेकर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने यूपी सरकार से सवाल करते हुए सीबीआई या सिटिंग जज से जांच कराने की मांग की। साथ ही परिवार को एक करोड़ का मुआवज़ा और सरकारी नौकरी देने की भी मांग उठाई। वही आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने उत्तर प्रदेश पुलिस की कस्टडी में हो रही मौत के मामले को संसद में उठाया।

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