Media Par Nazaar on Unemployment
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मोदी सरकार ने मान लिया की 45 सालों बेरोजगारी सबसे ज्यादा बढ़ी है। जीडीपी के गिरने की उम्मीद सब कर रहे थे। वैसा हुआ भी पिछले वित्तीय वर्ष अप्रैल 2018 से मार्च 2019 तक आर्थिक वृद्धि दर 6.8% रही। वहीं जनवरी से मार्च तक की तिमाही में ये दर 5.8% तक ही रही। ये दर पिछले दो साल में पहली बार चीन की वृद्धि की दर से भी पीछे रह गई है।

मगर मीडिया क्या दिखा रहा है इसपर नज़र डाल लेना ज़रूरी है। वो राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा टीवी पर उठा रही है। अमित शाह के गृह मंत्री बनने के बाद मीडिया में ख़ुशी लहर दौर पड़ी। हर तरफ धारा 370 और आर्टिकल 35-A का ज़िक्र किया जाने लगा जैसे रातों रात शाह फैसले लेकर इतिहास रच देंगें।

उदाहरण के तौर पर आज मीडिया में डिबेट एक बार फिर गैर ज़रूरी मुद्दे पर हो रही है। क्योंकि एनआरसी जैसे मुद्दों पर शाह की अपनी निजी राय चाहे जो हो मगर उन्हें काम सविंधान के तहत ही करना है।

मीडिया को इसपर जमकर बहस करनी चाहिए थी आखिर बेरोजगारी से कैसे निपटा जाए? आखिर जीडीपी में आई इतनी भारी गिरावट के पीछे क्या वजह है। ये सारे सवाल आज भी टीवी पर नहीं हो रहें है।

आजतक पर रोहित सरदाना के चर्चित टीवी डिबेट एनआरसी मुद्दे पर हो रही है। जो मुद्दा पूरी तरह से सुप्रीम कोर्ट की देख रेख में है। इसे बहस का मुद्दा इसलिए भी बनाया जा रहा है क्योंकि लोगो के मन से हमेशा की तरह अहम मुद्दों पर भटका दिया जाये।

इस मुद्दे को उठाने के पीछे एक एक भय का माहौल बनाने की कोशिश भी की जा रही है। क्योंकि शाह लोकसभा चुनाव के दौरान ये बात कहते रहे है की मोदी सरकार अगर एक फिर से सत्ता में आती तो वो सिखों और हिन्दुओं को छोड़ सभी घूसपैठियों को देश से बाहर कर देंगें।

रोजगार पर सवाल होने के बजाय अगर सवाल डर का माहौल बनाने से किया जाने लगा है। ऐसे में कैसे मान लिया जाये की लोकतंत्र का चौथा खम्बा जो कई विज्ञापनों के सहारे टिका हुआ है वो रोजगार और गिरती अर्थव्यवस्था पर बात कर सकता है? ये बड़ा सवाल है।

 

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