कासगंज में हुई हिंसा पर अब भले ही सबकुछ सामान्य हो गया है मगर मीडिया में इस मामले पर लगातार नज़र बनाई हुई है। मीडिया अब कासगंज हिंसा पर अहम मुद्दों पर भटकाने की कोशिश में लगी हुई है। न्यूज़ चैनलों में समाजवादी पार्टी के नेताओं वो बयान पर टीवी डिबेट होने जा रही है जिसका देश की समस्याओं से कोई लेना देना ही नहीं है।

राजनीति में कोई मरता नहीं है उसे सही वक़्त पर जिंदा किया जाता है। ऐसा कुछ हो रहा है कासगंज हिंसा में मारे गए चंदन गुप्ता के विषय पर क्योकिं मीडिया बिना जांच किये ही सारे फैसले सुनाना चाहती है। वो कहना चाहती है राम गोपाल यादव ने जो बयान दिया जिसमें उन्होंने मुस्लिम घरों में लगातार हो रही तलाशी और गिरफ्तारियों पर चिंता व्यक्त की, वो सब गलत है।

मीडिया ये नहीं दिखाना चाहती है बजट में शिक्षा या रक्षा में मोदी सरकार ने क्यों घटा दिया जबकि इस वक़्त देश पर पाकिस्तान और चाइना की लाल आँखें भारत पर ही बनी हुई है। मीडिया ये सारे अहम मुद्दे छोड़कर कासगंज हिंसा पर पहले चंदन की हत्या अब परिवार को धमकी ‘हत्या करने वाले ग़ैर मुसलमान’ कासगंज पर सांप्रदायिक सियासत क्यों?

अब बजट वाले इस तरह के सवाल की मीडिया को क्या ज़रूरत है? क्या मीडिया ने 125 करोड़ जनता का टॉपिक यही तय कर लिया है क्या कासगंज पर चर्चा उसकी जांच या फिर उसके बाद हो रही उत्तर प्रदेश पुलिस की जबरन कार्यवाही नहीं दिखाई दे रही है?

क्या अब देश का राष्ट्रवादी मीडिया सांप्रदायिकता को बढ़ावा नहीं दे रहा है? क्या उसे बेरोजगारी नहीं दिखाई दे रही है? ये समझना होगा क्योकिं अगर मीडिया का हाल यही रहा तो कुछ वो दिन दूर नहीं होगा जब लोग न्यूज़ चैनलों की जगह टीवी सीरियल देखना शुरू कर देंगे।

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