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दिल्ली विधानसभा ने भी NRC-NPR के खिलाफ प्रस्ताव पास कर दिया है. अब तक 11 राज्य इसके खिलाफ प्रस्ताव पास कर चुके हैं. जाहिर ​है कि इन राज्यों में जनता द्वारा चुनी हुई सरकारें हैं और वे इसके खिलाफ हैं. बड़ी संख्या में जनसमर्थन इसके खिलाफ है. यह कानून भारतीय नागरिकों की भावना के खिलाफ है.

दिल्ली विधानसभा ने इसके लिए विशेष सत्र बुलाया था. चर्चा के दौरान मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कहा कि ‘मेरी कैबिनेट के लोगों के पास ही जन्म प्रमाण-पत्र नहीं है, न ही मेरे पास है. मेरी पत्नी के पास भी जन्म प्रमाण पत्र नहीं हैं. मेरे मम्मी और पापा के पास भी नहीं है.

70 लोगों की इस विधानसभा में केवल 9 लोगों के पास जन्म प्रमाण पत्र हैं, 61 लोगों के पास नहीं हैं. तो क्या सभी को डिटेंशन सेंटर भेज दिया जाएगा? देश के अधिकतर मुख्यमंत्रियों के पास भी जन्म प्रमाण पत्र नहीं है. सनाउल्लाह खान सहित कई लोगों को असम में डिटेंशन सेंटर में डाला गया है. 11 राज्यों की विधानसभाओं ने कह दिया है कि npr और ncr नहीं लागू होना चाहिए.’

प्रस्ताव पेश करते हुए गोपाल राय ने कहा कि NPR-NRC से सिर्फ किसी एक समुदाय को धोखा नहीं हैं बल्कि भारत के हर एक नागरिक की नागरिकता को धोखा है. अगर हमारे पास कागज नहीं है तो क्या हम अपने ही देश में बाहरी घोषित किये जायेंगे?

इस दौरान विधायक राघव चड्ढा ने कहा कि एनपीआर 2010 में 13 जानकारियां ली गई हैं. 2020 वाले एनपीआर में 21 जानकारियां मांगी जा रही हैं, जिसमें सबसे खतरनाक जानकारी उनके माता पिता का जन्म प्रमाण पत्र. यदि किसी के पास ये नहीं है तो वो व्यक्ति संदिग्ध माना जाएगा. आज भी देश में बहुत बड़ी आबादी के पास जन्म प्रमाण पत्र नहीं है. बीजेपी के घटक दलों ने भी इस कानून को स्वीकार नहीं किया है. जेडीयू, शिरोमणी अकली दल, एआईएडीएमके जैसे भाजपा के सहयोगी दलों ने भी इसका विरोध किया है.’

भारत सरकार को सीएए और एनआरसी के मामले में इस देशव्यापी असहमति का सम्मान करना चाहिए कि और इस काले अंग्रेजी कानून को वापस ले लेना चाहिए.

  • कृष्णकांत

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