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लाखों भारतीयों के जनमानस की भावनाओं के खिलाफ लिए गए इस एक्शन को तर्कों के साथ बखूबी काट रहे हैं घाना के अश्वेत छात्र।

उन्ही बातों को लिख रहे हैं धर्मवीर यादव ‘ गगन’ , पढ़ें उनका ये लेख-

मानव सभ्यता के इतिहास में किसी भी विभूति को दो मूलभूत कारणों से सदा याद किया जाता है । एक – उस व्यक्ति विभूति की न्यायप्रियता। दो – उसकी मानव सभ्यता में की गई क्रूरता। इसी प्रक्रिया में आप अब्राहम लिंकन, मार्टिन लूथर किंग, अडोल्फ़ हिटलर, फुले, फूलन, गांधी, अम्बेडकर आदि को देख सकते हैं।

मैं महात्मा गांधी को एक राष्ट्रीय नेता के रूप में देखता हूँ कारण कि अनंत सड़े-गले तहों में सायास विभाजित (स्पृश्यता, जाति, वर्ण, गोत्र, क्षेत्र आदि) भारतीय समाज को ग्रेटब्रिटेन के विरुद्ध उन्होंने भारतीय जनमानस को राष्ट्रीय स्तर पर एक किया।

ब्रिटिश उपनिवेश के खिलाफ अहिंसक संघर्ष करने के लिए तैयार किया। इस एकता की एक ही भावना थी – ‘अंग्रेजों को भारत से भागना है।’ यह गांधी का महान आंदोलनकारी व्यक्तित्व था। जब गांधी के वैचारिक व्यक्तित्व अर्थात् गांधी को जब मैं एक विचारक के रूप में देखता हूँ तो वे जाति, वर्ण-व्यवस्था और नस्लीय के समथर्क के रूप में मिलते हैं।

वे जाति और वर्ण-व्यवस्था को ईश्वर कृत मानते हैं और स्पृश्यता अर्थात् अछूत भावना को मनुष्य कृत मानते हैं जबकि उस समय के उनके महान प्रतिपक्षी नेता बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर गांधी की इन बातों से पूर्णतः असहमत थे। वे इसे अर्थात् जाति, वर्ण और स्पृश्यता को मनुष्य कृत मानते थे। वे इसी वैचारिक भावभूमि पर मानव समता की सार्वजनिक लड़ाई लड़ रहे थे।

जो स्पृश्यता से होते हुए ब्रिटिश उपनिवेश तक विस्तृत थी। इस लड़ाई में लोकतांत्रिक समाज और सभ्यता की तलाश थी। इसी कारण मैं बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर को अपना हीरो मानता हूँ। अपना महान पुरखा मानता हूँ। कोई माने न माने समय सत्य का उद्घाटन करता है। आधुनिक, लोकतांत्रिक, न्यायप्रिय समाज इस की समय के साथ व्याख्या कर रहा है। उसे उदघाटित कर रहा है।

घाना की राजधानी अक्रा में एक विश्वविद्यालय में लगी गांधी की मूर्ति को तोड़ने और हटाने के लिए वहाँ के अश्वेत छात्रों ने कुछ वर्ष पहले संघर्ष छेड़ दिया था। अन्ततः छात्रों के तर्क ‘रेसिस्ट गांधी’ के सामने सरकार झुकते हुए आज गांधी की प्रतिमा को उस विश्वविद्यालय से तोड़ कर हटा दिया।

इस पर क़ानून के छात्र नाना अदोमा असारे अदेई ने बीबीसी से कहा,”उनकी प्रतिमा यहां होने का मतलब था कि वह जिन बातों के प्रतीक हैं, हम उनका समर्थन करते हैं। और अगर वह इन चीज़ों (कथित नस्लभेदी रवैया) का समर्थन करते थे तो मुझे नहीं लगता कि उनकी प्रतिमा कैंप में होनी चाहिए।”

इसी कारण लोकतांत्रिक सभ्य दुनिया के सामने आज गांधी दिन प्रतिदिन अप्रासंगिक होते जा रहे हैं जबकि डॉ. अम्बेडकर दुनिया के सामाने दिन प्रतिदिन प्रासंगिक होते जा रहे हैं। ऐसे ही नहीं डॉ. अम्बेडकर को बराक ओबामा “नॉलेज का सिंबल” कहा था।

कांचा इलैया ने एक साक्षात्कार में कहा था कि गांधी संस्थानों में सिमटते संरक्षित होते जा रहे हैं जबकि अम्बेडकर व्याख्यायित, सार्वजनिक, रूहानियत, लोकतांत्रिक सभ्यदुनिया के नेता-विचारक होते जा रहे हैं।


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