राजस्थान में जोधपुर के विशेष सीबीआई अदालत ने बीजेपी की अटल सरकार में केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी समेत पांच लोगों के खिलाफ केस दर्ज करने का आदेश दिया है।

कोर्ट ने कहा कि जिस होटल की कीमत ढाई सौ करोड़ रुपये से भी ज्यादा थी, उन्हें सिर्फ सात करोड़ रुपये के औने-पौने दाम लेकर बेच दिया गया।

दरअसल अरुण शौरी वाजपेयी सरकार में विनिवेश मंत्री थे। वाजपेयी सरकार ने सरकारी कंपनियों को निजी हांथों में सौंपने के मकसद से 10 दिसंबर, 1999 को अलग विनिवेश विभाग का ही गठन कर दिया था। फिर 6 सितंबर, 2001 को विनिवेश मंत्रालय बना दिया गया जिसकी कमान अरुण शौरी के हाथों सौंप दी गई।

जिनके पद पर रहते मंत्रालय ने कई बड़ी सरकारी कंपनियों के सौदे को मंजूरी दी थी। अब वो इन्हीं सौदों में एक को लेकर निशाने पर आ गए हैं।

पूरा मामला कुछ यूं है, उदयपुर की फतहसागर झील किनारे लगभग सौ एकड़ भूमि पर ऐतिहासिक हैरिटेज होटल द लक्ष्मीविलास पैलेस स्थित है। यह सरकारी प्रॉपर्टी थी इस होटल को विनिवेश मंत्रालय ने ललित समूह को मात्रसात करोड़ 52 लाख रुपये में बेच दिया।

यूपीए सरकार को बहुमत मिलने पर कर्मचारी संगठनों ने होटल के विनिवेश की उच्च स्तरीय जांच कराए जाने की मांग की। साल 2014 में यूपीए सरकार ने होटल द लक्ष्मीविलास पैलेस के विनिवेश को संदिग्ध माना।

इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई और सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में द लक्ष्मीविलास पैलेस होटल की संपत्ति को लगभग 151 करोड़ रुपये की बताया।

एनडीए सरकार में विनिवेश मंत्री रहे अरुण शौरी, सचिव प्रदीप बैजल, पर्यटन सचिव रवि विनय झा, फाइनेंसियल एडवाइजर आशीष गुहा, निजी वैल्यूअर कंपनी कांति करमसे के साथ भारत होटल्स लिमिटेड के खिलाफ केस भी दर्ज कराया था। अंत में मामला सीबीआई अदालत में पहुंचा।

अब अपने फैसले में लक्ष्मीविलास पैलेस के विनिवेश को सीबीआई अदालत ने गलत ठहराया है। सीबीआई अदालत के आदेश पर कलेक्टर ने इसे अपने कब्जे में ले लिया है कहा जा रहा है आगे इस होटल का संचालन आईटीडीसी करेगी

जिस तरह से मोदी सरकार एक बाद एक सरकारी संपत्ति बेचने की घोषणा करती जा रही है। एक न एक दिन इनकी भी पूरी पोलपट्टी खुलेगी, जैसे 2001 में किया गया घोटाला आज खुला है। कुछ सालों बाद इनके पाप भी फूटेंगे।

(यह लेख गिरीश मालवीय की फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है)

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