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राहुल गांधी अपने ही नाराज नेताओं से क्यों नहीं मिलते? क्या इंदिरा कांग्रेस के दौर का सामंत उनके भीतर भी जिंदा है?

असम के दिग्गज नेता हेमंत बिस्वा सरमा कभी कांग्रेस में हुआ करते थे. पार्टी में चल रही कुछ परेशानियों को लेकर राहुल गांधी से मिलने दिल्ली आए थे. राहुल गांधी उनसे मिले तो सही, लेकिन कोई खास ध्यान नहीं दिया. बाद में सरमा ने आरोप लगाया कि जब मैं राहुल गांधी से बात करने पहुंचा तो वे अपने पालतू कुत्ते को बिस्कुट खिलाने में व्यस्त थे. यह बात 2015 की है.

हेमंत सरमा वापस गए और कांग्रेस छोड़कर बीजेपी ज्वाइन कर ली. हेमंत का पूर्वोत्तर राज्यों में काफी प्रभाव है. 2016 में चुनाव हुआ तो बीजेपी को जिताने में उनकी बड़ी भूमिका रही. कांग्रेस असम से तो गई ही, पूरे पूर्वोत्तर से साफ हो गई. बीजेपी ने पहली बार पूर्वोत्तर राज्यों में सरकार बनाई. कांग्रेस का मजबूत गढ़ यूं ही ढह गया.

हाल में सिंधिया ने पार्टी छोड़ी तो उनका भी आरोप था कि वे राहुल और सोनिया से मिलना चाह रहे थे लेकिन उन्हें समय नहीं दिया गया.

अब कुर्सी की खींचतान को लेकर सचिन पायलट दिल्ली में हैं और खबरें हैं कि राहुल गांधी या सोनिया गांधी से उनकी मुलाकात नहीं हो सकी है.

2014 में बीजेपी के उभार में तमाम कांग्रेसियों का भी सहयोग था. उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में 40-45 साल पुराने कांग्रेसी भी पार्टी छोड़ गए, क्योंकि वे असंतुष्ट थे. कांग्रेस पार्टी का सिस्टम अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं में जोश नहीं भरता. उन्हें निराश करता है. बीजेपी में इसका उल्टा है.

राजस्थान में पायलट की ​स्थिति, मध्य प्रदेश के सिंधिया से मजबूत है. उन्होंने पार्टी की सत्ता में वापसी कराई और उसका प्रतिदान चाहते हैं. राहुल गांधी अध्यक्ष पद से हट चुके हैं. वे गांधी परिवार से बाहर से, सिंधिया या पायलट जैसे युवा नेताओं को भी पार्टी का अध्यक्ष बना सकते थे. लेकिन वे अपने नेताओं की आपसी लड़ाई ही नहीं रोक पाते.

इनकी नेतृत्व क्षमता का अंदाजा इसी से मिल जाता है कि ये अपने नेताओं से ही नहीं मिलना चाहते, जनता और कार्यकर्ता और दूर की कौड़ी हैं.

(ये लेख पत्रकार कृष्णकांत के फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है)

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