नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में देश जल रहा है। सरकार देशवासियों को यह समझाने में विफल रही है कि यह कानून देश के हित में है और यह भी कि इसे लागू कैसे किया जाएगा। पाक, बंगलादेश और अफगानिस्तान जैसे इस्लामी देशों के सताए हुए हजारों अल्पसंख्यक शरणार्थियों को नागरिकता देने के सरकार के फैसले पर कोई सवाल नहीं है।
इन देशों से आने वाले लाखों मुस्लिम घुसपैठियों को निकाल बाहर करने का निर्णय कथित देशभक्तों को अच्छा लग सकता है, लेकिन सवाल यह है कि इन घुसपैठियों की पहचान क्या आसान है ?
इसके लिए देश भर में एन.आर.सी तैयार करना होगा। एन. आर. सी का हश्र हम असम में देख चुके हैं। इसमें इतनी जटिलताएं हैं कि यह काम सौ साल में भी पूरा नहीं हो पाएगा। उलटे इस प्रकिया में हमारे देश के मुसलमानों को अपनी नागरिकता साबित करने में बेपनाह मानसिक और भावनात्मक प्रताड़ना का सामना करना होगा।
देश को जलाकर सरकार ने ऐसा कर भी दिखाया तो क्या ऐसे लाखों घुसपैठियों को बंगलादेश या पाक वापस अपने देश में स्वीकार करेंगे ? अगर नहीं तो क्या सरकार उन लाखो लोगों को बंगाल की खाड़ी में डालकर उनसे मुक्त होने का इरादा रखती है ?
लगता तो यही है कि नागरिकता संशोधन कानून का उद्देश्य विदेशी घुसपैठियों को निकालना नहीं, देश को अराजकता की आग में झोंककर कट्टर हिन्दूओं को खुश करना भर है।