अंततः विकास दुबे कानपुर वाला कानपुर में पुलिस के हाथों मारा गया। अब इस विवादास्पद एनकाउंटर पर जमकर राजनीति भी होगी और चौतरफ़ा मुकदमेबाजी भी। हां, इतना ज़रूर है कि इस मुठभेड़ से दुबे के हाथों मारे गए सभी आठ पुलिसकर्मियों के स्वजनों-परिजनों को थोड़ी-बहुत शांति मिली होगी।

खुशी उन लोगों को भी होगी जिन्होंने दुबे के तीन दशकों के आपराधिक जीवन में किसी न किसी रूप में यातनाएं झेली हैं। उत्तर प्रदेश पुलिस प्रसन्न होगी कि इस मुठभेड़ द्वारा उसने अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा फिर हासिल कर ली है।

योगी जी खुश होंगे कि एक मज़बूत और दुःसाहसी शासक के तौर पर उन्होंने अपनी छवि बना ली है। खुश देश के विपक्षी दल भी होंगे जिन्हें सरकार पर आक्रामक होने का एक और अवसर मिला है। देश के कुछ मानवाधिकार कार्यकर्ता फूले नहीं समा रहे होंगे जिन्हें इस मुठभेड़ के ख़िलाफ़ कोर्ट पहुंचकर एक बार फिर सुर्खियां हासिल करने का मौक़ा हासिल हुआ है।

सबसे ज्यादा ख़ुश प्रदेश के सत्ताधारी और सभी विपक्षी दलों के असंख्य छोटे-बड़े नेता और जयचंद किस्म के पुलिसकर्मी होंगे जिन्हें दुबे के जीवित रहते उसके साथ अपने नापाक रिश्तों के किसी भी वक़्त बेनक़ाब होने की चिंता सता रही थी।

मुसीबत देश के आम लोगों की है जो बहुत दिनों तक समझ ही नहीं पाएंगे कि उत्तर प्रदेश में जो हो रहा है उससे उन्हें खुश होना चाहिए या चिंतित !

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