कृष्णकांत

‘मेरे मरने के बाद मेरे परिवार के पास मेरे अंतिम संस्कार भर का भी पैसा नहीं होगा.’

आत्महत्या करने से पहले उसने सुुसाइड नोट में जाने क्यों यह बात लिखी होगी! शायद उसे किसी से तो उम्मीद बची थी जो यह बात समझेगा. निराश तो वह इतना हो गया था, अब जीना मुनासिब नहींं लगा.

भानु प्रताप लखीमपुर खीरी के रहने वाले थे. अपनी माली हालत से घबरा गए थे. ट्रेन से कटकर आत्महत्या कर ली. उनकी जेब से एक सुसाइड नोट बरामद हुआ है जिसमें उनकी गरीबी और बेरोजगारी का जिक्र है.

भानू शाहजहांपुर में एक होटल पर काम करते थे. लॉकडाउन के बाद से घर आ गए. आर्थिक स्थिति इतनी बिगड़ गई कि घर में खाने को कुछ नहीं था. बूढ़ी मां के इलाज के लिए पैसे नहीं थे. मां बेटे दोनों सांस की बीमारी से परेशान थे.

तीन बेटियां, एक बेटा और बूढ़ी मां को छोड़कर भानू रेलवे ट्रैक पर लेट गया. भानू की जेब से मिले सुसाइड नोट में लिखा है, ‘राशन की दुकान से उसको गेहूं चावल तो मिल जाता था लेकिन इतना काफी नहीं था. चीनी-चायपत्ती, दाल, सब्जी, मसाले जैसी रोजमर्रा की चींजें अब परचून वाला भी उधार नहीं देता है. मैं और मेरी विधवा मां लम्बे समय से बीमार हैं. गरीबी के चलते तड़प-तड़प के जी रहे हैं. शासन प्रसाशन से भी कोई सहयोग नहीं मिला. हालत यह है कि मेरे मरने के बाद मेरे परिवार के पास मेरे अंतिम संस्कार भर का भी पैसा नहीं होगा.’

मजदूरों को घर पहुंचाने के लिए ट्रेनें नहीं पहुंचीं, लेकिन उनकी जान लेने के लिए पहुंंच गईं. हमारी ट्रेनें सरकारी हैं. वे सरकार की तरह जान बचाने नहींं पहुंंचतींं, जान लेने जरूर पहुंंच जाती हैं. यह ट्रेन रास्ता भी नहीं भटकी कि कहीं और चली जाती तो भानु प्रताप बच जाता.

जिन मजदूरों को ट्रेन नहीं मिली थी, वे रेलवे ट्रैक पर सोए और ट्रेन से कुचलकर मारे गए. भानु प्रताप ने खुद ही ट्रेन के नीचे लेटकर जान देना मुुनासिब समझा.

श्रमिकों के लिए चलाई गई स्पेशल ट्रेनोंं में 9 से 27 मई के बीच 80 लोगों की मौत हो चुकी है.

ये 80 लोग वे थे जो जीना चाहते थे, अपने घर जाना चाहते थे और मारे गए. लेकिन भानुु प्रताप तो मरना चाहता था. ट्रेन आ गई और वह कट गया.

प्रशासन ने कहा ​है कि जांंच करके बताएंंगे कि आत्महत्या क्यो की? आज के बाद इस बारे में कौन बात करेगा? कल दूसरा शख्स आत्महत्या कर लेगा. हम उसकी खबर पढ़ लेंगे. परसों तीसरा…चौथा…

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