आर्थिक बहिष्कार करने वालों से पूछिए कि वे मुख्तार अब्बास नकवी और शाहनवाज हुसैन का बहिष्कार कर सकते हैं? सलमान खान, आमिर खान, शाहरूख खान का बहिष्कार कर सकते हैं? तमाम अमीर और करोड़पति मुसलमानों का बहिष्कार कर सकते हैं?
फिर उस ठेला वाले ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है जो दिन में सौ दो सौ कमाकर अपने बच्चों का पेट पालता है? प्रधानमंत्री ने तो कोरोना को हराने के लिए करुणा का आह्वान किया था, यह क्रूरता किसने चाही?
यह करके तुम किसका सिर ऊंचा करोगे? हिंदू धर्म का? भारत का? उसी हिंदू धर्म का जिसमें खुद भूखा रहकर, भूखे का पेट भरना सिखाया जाता है? उसी भारत का जिसके लिए विवेकानंद ने शिकागो में कहा था कि मैं उस भारत से आया हूं जहां सभी धर्मों के लोग रहते हैं?
उसी हिंदुत्व का सिर ऊंचा करने के लिए मुसलमानों के खिलाफ फर्जी खबरों से इंटरनेट को भर दिया गया है?
यह वैश्विक महामारी का दौर है. दुनिया में हजारों हजार लोग मर रहे हैं. हमारे यहां भी लोग मर रहे हैं, लेकिन हमारे देश के युवा ठेला, रेहड़ी, पटरी वाले गरीबों को पीटने में खर्च हुए जा रहे हैं. उनकी जवानी गरीबों को प्रताड़ित करने में चुक जाएगी.
वे समझते हैं कि वे बहादुरी का काम कर रहे हैं, इसलिए झूठे वीडियो वायरल करते हैं. वे दस साल पुराने पाकिस्तान और बांग्लादेश के वीडियो वायरल करते हैं. वे दस साल पुराने वीडियो को इंदौर या सहारनपुर का बताकर क्यों वायरल करते हैं? ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि हिंदुओं को मुसलमानों के खिलाफ गोलबंद किया जा सके.
यह सब वे धर्म के नाम पर कर रहे हैं. यह उन्हें सिखाया गया है. खुद ईश्वर के पास भी इस पाप का कोई तर्क नहीं होगा कि महामारी के दौरान गरीब मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाई जा रही है और उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है.
यह अधर्म है. यह पाप है. यह जघन्य किस्म का अपराध है. गरीब आदमी की रोजी पर लात मारने से बड़ा पाप दूसरा नहीं हो सकता. उसके छोटे बच्चों ने तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ा है. उसने भी तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ा है. यह सब क्यों कर हो? हिंदुओं के लिए? नहीं. इसमें हिंदुओं का कोई हित नहीं है. अपना एक हाथ काट देने से शरीर बलिष्ठ नहीं होता, शरीर अपाहिज हो जाता है. तुम हिंदुओं और उनके साथ साथ हिंदुस्तान के दुश्मन हो. जो इस नीचता को उकसा रहे हैं, वे भारत का भला नहीं कर रहे हैं.
(ये लेख पत्रकार कृष्णकांत के फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है)