यही असली क्रोनोलॉजी है. पहले कुछ लेखक, पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता ‘आतंकवादी’ कहे गए. फिर सरकारी धतकरमों का विरोध करने वाले आम लोग ‘आतंकवादी’ कहे गए. फिर विरोध में खड़े हुए सभी लोग ‘आतंकवादी’ कहे जाने लगे.

पिछले महीनों से पंजाब, हरियाणा, तेलंगाना जैसे राज्यों में किसान नये कानून का विरोध कर रहे हैं. अब कोई सनकी इन किसानों को भी ‘आतंकवादी’ कह सकता है और आराम से ट्विटर पर प्रोपेगैंडा ट्वीट करता रह सकता है.

लोकतंत्र की मेरी समझ ये है कि ये देश जितना राष्ट्रपति का है, जितना प्रधानमंत्री का है, जितना सबसे अमीर आदमी का है, उतना ही एक गरीब आदमी का है, उतना ही जेल में बंद एक आम अपराधी का है.

आप किसी को उसके अपराध की सजा तो दे सकते हैं, लेकिन उसकी नागरिकता पर, उसकी राष्ट्रीयता या राष्ट्रीय निष्ठा पर बिना वजह सवाल नहीं उठा सकते.

इसका अधिकार आपको नहीं है. इस देश की 60 फीसदी आबादी खेती पर निर्भर है. अगर देश का किसान आतंकवादी हो गया तो आपको सिर्फ जहन्नुम में ही जगह मिलेगी.

खैर, राष्ट्रवाद के सड़े हुए उन्माद की ये क्रोनोलॉजी भयावह है. अगर आपको इससे डर नहीं लगता तो आपको फिर से सोचना चाहिए. आपको इस क्रोनोलॉजी से डरना चाहिए.

(यह लेख पत्रकार कृष्णकांत की फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है)

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