देश के हर शहर में कोविड हस्पताल बनाने की बाते कर रहे हैं। पूरा एक साल झक मारी है सरकार ने! पर जरा रुकिए एक साल नहीं पूरे सात साल इस मोदी सरकार ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में कोई काम नही किया है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है एम्स यानी ‘अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान’

मोदी सरकार ने 2014 में चार नए एम्स, 2015 में 7 नए एम्स और 2017 में दो एम्स का ऐलान किया लेकिन 2018 में अपनी चौथी सालगिरह से ऐन पहले, मोदी कैबिनेट ने देश में 20 नये एम्स यानी आखिल भारतीय चिकित्सा संस्थान बनाने का ऐलान किया पर यह सारे एम्स जुमले साबित हुए।

मनमोहन सिंह के कार्यकाल में 2011 में एक साथ देश में 6 एम्स बने थे। देश में दिल्ली के अलावा छह अन्य स्थानों रायपुर, पटना, जोधपुर, भोपाल, ऋषिकेश और भुवनेश्वर में एम्स अस्पतालों को चालू किया गया, लेकिन उसके बाद मोदी सरकार ने जितने भी एम्स बनाने की घोषणा की है उसमें से एक एम्स भी पूरा नही हुआ है।

खास बात यह है कि इनमे से अधिकांश एम्स बनने की तारीख अप्रैल 2021 बताई गई थी लेकिन किसी भी जगह कोई काम पूरा नही हुआ है। कही तो जमीन के पते नही है कही तो बजट का आवंटन ही नही किया गया।

बिहार के दरभंगा में तथा हरियाणा के मनेठी में बनने वाले एम्स की जमीन तक फाइनल नही है, झारखंड के देवघर में बनने वाले एम्स का अभी एक-चौथाई काम ही पूरा हुआ है।

गुवाहाटी में बनने वाले एम्स का अभी तक महज एक तिहाई काम ही पूरा हो पाया है, पश्चिम बंगाल के कल्याणी में बनने वाले एम्स में भी देर हो रही है, आंध्रप्रदेश के मंगलागिरी में बनने वाले एम्स के लिए रेत ही उपलब्ध नहीं है जम्मू के सांबा में बनने वाले एम्स का भी महज सात फीसदी काम पूरा हुआ है।

गुजरात के राजकोट में बनने वाले एम्स की तो सिर्फ घोषणा भर हुई है। मदुरई में बनने वाले एम्स और जम्मू कश्मीर के अवंतीपुर में बनने वाले एम्स अभी कागजो पर ही है बाकी जगहों पर भी यही हाल है।

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में जो एम्स है उसकी घोषणा 2007 में हुई थी, वहाँ भी यह हालत है कि 750 बेड की ओपीडी अब तक ठीक से नही बन पाई है। रायबरेली एम्स की भी बुरी हालत है। सोनिया गांधी के चुनाव क्षेत्र होने की वजह से यहाँ सौतेला बर्ताव किया जाता है। रायबरेली एम्स पूरी तरीके से शुरू होने में करीब 2 वर्ष का समय लगने की बात की जा रही है।

2020 जनवरी में कोरोना काल के ठीक पहले सरकार ने घोषणा कर दी कि 2020 खत्म होते होते में देश को छह नए एम्स सुपरस्पेशलिटी अस्पतालों का तोहफा मिलने जा रहा है लेकिन एक भी हस्पताल ठीक से चालू नहीं हुआ है।

ये सारे एम्स बनेंगे कहां से? आप पूछिए कि मोदी सरकार ने अपने 6 यूनियन बजट में इनको कितने हजार करोड़ अलॉट किये हैं तो आपको हकीकत समझ आ जाएगी।

लेकिन जब वोट मंदिर दिखा कर लिया जा सकता है तो एम्स जैसे अस्पताल आखिर मोदी सरकार क्यो बनाएगी। इसलिए अगर कोविड के इस भयानक दौर में आपको इलाज नही मिल रहा, हजारों लाखों रुपए आपसे निजी हस्पताल वाले लूट रहे हैं तो वास्तव में आप खुद सोचिए कि आपने हस्पतालों के नाम पर वोट दिया भी कहा है?

बहुत से लोग लिखते हैं कि जनता मास्क लगाने में लापरवाही कर रही है इसलिए वो दोषी है लेकिन जनता असलियत में इसलिए दोषी है कि वह सस्ती शिक्षा और सस्ती चिकित्सा सुविधाओं के बारे अपने जनप्रतिनिधियों से सवाल तक नही पूछती।

(यह लेख गिरिश मालवीय की फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है)

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