राजस्थान में 52 वर्षीय गफ्फार अहमद के साथ हुई ज्यादती पर सोशल मीडिया पर तमाम प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। इसी क्रम में पत्रकार कृष्णकांत ने लिखा-

गफ्फार अहमद 52 बरस के हैं. ऑटोरिक्शा चलाकर पेट पालते हैं. कुछ शोहदे चाहते थे कि गफ्फार ‘जयश्रीराम’ और ‘मोदी जिंदाबाद’ का नारा लगाएं. उन्होंने नारा नहीं लगाया. शोहदों ने मारकर उनका दांत तोड़ दिया.

गफ्फार ने भागने की कोशिश की तो उनको कार से खदेड़ कर पकड़ा और पीटा. उन्हें इतनी बुरी तरह पीटा गया है कि उनके दांत टूट गए और चेहरा सूज गया.

गफ्फार का आरोप है कि ‘मेरी दाढ़ी खींची गई, लात और घुसे मारे. मुझे आंख, गाल और सिर पर गंभीर चोटें आई हैं. उन्होंने मुझे डंडे से मारा और पीटने के बाद कहा कि वे मुझे पाकिस्तान भेजने के बाद ही आराम करेंगे.’

किसी को भारत में जिंदा रहने के लिए ‘जयश्रीराम’ और ‘मोदी जिंदाबाद’ का नारा लगाना क्यों जरूरी है? भगवान के नाम पर नारे लगाकर ही झारखंड में एक व्यक्ति की जान ली गई थी. गाय के बहाने दर्जनों कांड किए गए. कभी भारत माता, कभी गाय, कभी राम, कभी मोदी, क्या ये सब एक दूसरे के पर्याय हैं? क्या इन सबका नाम भजना जीवित रहने की गारंटी है? क्या भारत माता, गाय माता, राम और मोदी एक बराबर हैं?

अभी कुछ ही दिन पहले गुड़गांव में मॉब लिंचिंग हुई थी. एक युवक को गो मांस ले जाने के शक में हथौड़े से पीटा गया था. कथित गो रक्षकों ने 8 किलोमीटर पीछा करके लुकमान की पिक-अप रोकी और उसे शक के आधार पर पीटा.

यह कौन-सा धर्म है? यह कौन-सा राष्ट्रवाद है? यह कौन-सा देशहित है जिसमें भारत माता, गाय, श्रीराम और नरेंद्र मोदी सब एक बराबर हैं? यह कौन-सा चलन है कि बहाना किसी नाम का हो, लेकिन उसका मकसद सिर्फ घृणा और हिंसा है?

यह हिंसा, यह घृणा, यह नंगा नाच किस धर्म संस्कृति का हिस्सा है और इसकी प्रेरणा कौन देता है? किस ग्रंथ में लिखा है कि राजनीतिक विरोधियों को धर्म का सहारा मारा जाए? किस ग्रंथ, किस किताब, किस देवता या महापुरुष की सीख है कि बिना वजह निर्दोषों की जान ली जाए?

क्या हिंदू धर्म का ही एक हिस्सा हिंदू धर्म के लिए खतरा नहीं बन गया है? गीता, रामायण, रामचरितमानस, वेद, पुराण कहां से ये प्रेरणा मिली है कि हिंदू निर्दोषों पर अत्याचार करेंगे तो शक्तिशाली हो जाएंगे? इस पशुता को खाद पानी कहां से मिल रहा है? कौन लोग हैं जिन्हें लगता है कि इससे देश का भला होगा?

यह नफरत का ऐसा नासूर है जो सदियों तक देश के दामन पर जख्म दे जाएगा और हम-आप अपने ही बदन से रिसता हुआ रक्त देखने के काबिल नहीं रहेंगे. जो इसे हवा दे रहे हैं, उनका समर्थन बंद कर दीजिए. वरना ये भीड़ एक दिन किसी को नहीं छोड़ेगी.

नफरत के सौदागर हमेशा पीढ़ियों को नफरत की आग में झुलसने के लिए छोड़कर मर जाते हैं. उनके पीछे मत भागिए.

(ये लेख पत्रकार कृष्णकांत के फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है)

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