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ये तो पहले दिन से ही तय है कि ये वाली सरकार सिर्फ प्रतीकों पर ही काम करती है. विकट से विकट संकट आ जाए सरकार ठोस काम की जगह प्रतीकों में खेलेगी. कोरोना संकट आया तो ताली-थाली बजा लो. चीन हमारी जमीन ले गया तो हमने हजारों एप्स में से कुछ एप्स बैन करके उसे कड़ा जवाब दे दिया. इन कंपनियों ने पीएम केयर्स में भी फंड दिया है और शायद इसलिए बैन बस ऐसा ही है कि पहले के डाउनलोड किए गए एप्लिकेशन अभी भी काम कर रहे हैं.

मीडिया चैनलों की बात ही करना बेकार है. उनमें खुद चीनी कंपनियों का निवेश है. वैसे जिन 59 एप पर बैन लगाया है, उनमें भारतीयों का भी निवेश है. वापस चीन की फंडिंग लिए मीडिया चैनलों पर आते हैं. एक तरफ ये लोग चीन पर डिजिटल स्ट्राइक का स्लग चला रहे हैं और दूसरी तरफ अभी भी चीनी कंपनियों के मोबाइल फोन का विज्ञापन उनकी स्क्रीन्स पर चल रहा है.

बीते दिनों दो खबरें आईं. पहली ये कि भारतीय बंदरगाहों पर चीन से आने वाला सामान रोका गया. इसके बाद एप्पल कंपनी ने भारत सरकार से शिकायत की कि ऐसा होने पर विदेशी निवेशकों में गलत संदेश जाएगा. एप्पल आईफोन असेंबल भले चीन में होता है लेकिन कंपनी तो अमेरिका की है.

चीन से आने वाला सामान रोका गया तो इसके बदले चीन ने हांगकांग के बंदरगाहों पर भारतीय निर्यातकों का सामान रोक लिया. इन दोनों खबरों को मिलाकर एक स्टोरी की मैंने. इस दौरान मेरी बात दो लोगों से हुई. एक फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट आर्गेनाइजेशन के अध्यक्ष एसके सर्राफ से और दूसरे मारुति सुजुकी इंडिया के अध्यक्षी आरसी भार्गव से.

जो सबसे पहली बात मुझे पता चली वो यह कि चाहे चीन भारत का सामान रोके या भारत चीन का, नुकसान दोनों तरफ के व्यापारियों का होना है. दूसरी बात जो मुझे पता चली वो ये कि भारत फार्मास्यूटिकल से लेकर ऑटोमोबाइल तक कच्चे माल से लेकर अंतिम उत्पाद तक चीन पर बुरी तरह से निर्भर है. भारत अभी इतना सक्षम नहीं है कि खुद कच्चा माल निकाल ले या चीन के अलावा कहीं और से सस्ते में इसका जुगाड़ कर ले.

आरसी भार्गव ने तो मुझसे ये कहा कि चीन की बहिष्कार की बात करना तो आसान है लेकिन असलियत में ऐसा करना असंभव. उन्होंने कहा कि वे शौक से चीन से सामान नहीं मंगाते बल्कि और कोई विकल्प ही नहीं है. सामान नहीं मंगाएंगे तो बाकी काम भी नहीं चलेगा. बाकी काम नहीं चलेगा तो लोग बेरोजगार होंगे.

एसके सर्राफ ने बताया कि पैरसीटॉमाल बनाने के लिए कच्चे माल पर हम चीन पर निर्भर हैं. नहीं आएगा तो दवाई भी नहीं बनेगी. उन्होंने कहा कि जब तक हम चीन के अलावा कोई और विकल्प का इंतजाम नहीं कर लेते तब तक उसका बहिष्कार करना अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने के बराबर होगा.

एक तीसरी बात और पता चली कि भारत कई देशों से कच्चा माल मंगाकर उसे अंतिम उत्पाद में बदलकर दूसरे देशों को बेचता और इससे हमें काफी फायदा होता है. इस पूरी प्रक्रिया में चीन से आने वाले कच्चे माल का हिस्सा लगातार बढ़ा है. 2009 में ये 1.8 प्रतिशत था तो 2019 में 34.1 प्रतिशत हो गया.

बाकी अब बहिष्कार वाला आप देख लीजिए. एप बैन करना बस एक प्रतीक है. दरअसल, जेपी नड्डा जी ने कांग्रेस को जवाब देने के चक्कर में 2005-06 में राजीव गांधी फंड को चीन से मिली फंडिंग वाली बात उठाकर बर्रैया के छत्ते में हाथ डाल दिया।

इतना होना था कि कांग्रेस वाले बीजेपी-आरएसए और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों के मधुर संबंधों की पूरी लिस्ट निकाल लाए. संबंधों से बात आगे निकलर फंडिंग तक पहुंची तो पता चला कि हमारे विदेश मंत्री जिस थिंक टैंक से जुड़े हुए हैं वो भी चीन से फंडिंग लेता है. डोभाल जी का लड़का जो फाउंडेशन चलाता है उसको भी चीन से फंडिंग मिलती है. हमारे गृह मंत्री का बेटा बीसीसीआई का सचिव है और वीवो आईपीएल का स्पॉन्सर है. तो नड्डा जी की वजह से रायता फैल गया. दोनों पार्टी वाले एक दूसरे को बताने लगे कि देखो तुम्हारे ऊपर ज्यादा कीचड़ लगा है. अब क्योंकि एक पार्टी सत्ता में हैं, विपक्ष में भी लाल आंखे दिखाने का आह्वान करती रही है और रोज रोज जारी हो रही सैटेलाइट तस्वीरों की वजह से लगातार बैकफुट पर जा रही है तो एप बैन करके सांकेतिक रूप में खेलने की कोशिश कर रही है।

(ये लेख मुरारी त्रिपाठी की फेसबुक वॉल से लिया गया है। लेख में व्यक्त विचार उनके निजी हैं।)

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