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यह विनोद तिवारी का बच्चा है। इतना छोटा बच्चा समझ नहीं पा रहा है कि मेरी माँ क्यों रो रही है। उसे नहीं पता कि उसे क्या करना चाहिए?

32 साल का तिवारी दिल्ली की नवीन विहार कॉलोनी में अपनी पत्नी व दो बच्चों के किराए के मकान में रहता था। बिस्कुट व कुरकुरे आदि सामान की सेल्समैनी करके अपने परिवार का भरण पोषण कर रहा था।

लॉकडाउन के बाद काम बंद होने से आय का साधन समाप्त हुआ तो विनोद तिवारी शुक्रवार की देर रात्रि पत्नी व दो बच्चों को मोपेड पर बिठाकर यूपी के सिद्धार्थनगर घर के लिए चल पड़ा। अलीगढ़ के पास उसकी तबीयत बिगड़ी। वह मर गया।

न तो उसे मरने का शौक रहा होगा, न यह शौक रहा होगा कि गांव में जाकर कोरोना फैलाएं। दिल्ली में मर जाने की नौबत देखकर भागा होगा और आधे रास्ते में मर गया।

कहानी यहीं खत्म नहीं होती। उसके शव को कोई पहुँचवाने वाला नहीं था। अधिकारियों ने कहा कि यहीं जो करना हो कर दो। देर तक बच्चो को शव के पास बैठे देख एक मुस्लिम सब इंस्पेक्टर को तरस आई। उसने 15 हजार रुपये खुद देकर गाड़ी तय की।

कहानी आगे और भी है। इस कर्फ्यू में जो शव ले जाने का साहस दिखा पाए, वह दोनों भी नदीम और छोटे नाम वाले थे।

(यह लेख सत्येंद्र PS की फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है)

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