महेंद्र यादव
सीएए के विरोध में देशभर में चले प्रोटेस्ट के दौरान अनेकों गिरफ्तारियां हुई। जिसमें दिल्ली के सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी चर्चा का विषय रहे क्योंकि बिना किसी ठोस सबूत के उन्हें गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया था।
अब एक साल बाद पिंजरा तोड़ संगठन की नताशा नरवाल और देवांगना को, और सामाजिक कार्यकर्ता आसिफ इकबाल को बेल मिली है।
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए पत्रकार महेंद्र यादव लिखते हैं-
हां, जिस दिन इनको गिरफ्तार किया गया होता, उसी के एक दो दिन के अंदर जमानत मिल जाती तब तो मानते कि अदालत ने सही दखल दिया।
मई 2020 से जून 2021 तक तो जेल में डाले रहे, तब समझ नहीं आया कि इनका कृत्य आतंकवादी कार्रवाई नहीं है।
अब जबकि छोड़ने की बारी आई तब लोकतंत्र रक्षा की बड़ी बड़ी बातें करके अदालत का इकबाल बुलंद करने लगे।
निचली अदालत तो इनको जमानत देने के ही खिलाफ रही, और हाईकोर्ट ने भी आराम से समय बिताया। 18 मार्च को तो तीनों की जमानत पर सुनवाई पूरी हो ही गई थी और दो माह तो फैसला सुनाने में ही लगा दिए।
इस दौरान नताशा नरवाल के पिता की मौत हो गई, वह अंत्येष्टि में शामिल नहीं हो पाई, अदालत ने उसके बाद नताशा को अंतरिम जमानत देने का समय भी निकाल लिया लेकिन नियमित जमानत का फैसला न पढ़ पाई।
आसिफ इकबाल तनहा को भी परीक्षा देने के लिए अंतरिम जमानत देने का समय मिल गया, लेकिन नियमित जमानत नहीं दे सके।
क्या यह माना जाए कि इन तीनों को एक साल ही रखने का प्लान था और इसमें सबका साथ रहा।
और, फैसले में सरकार को जो कहा, उसमें कोई ऑर्डर नहीं है, केवल भाषण है। ऑर्डर तो नताशा, आसिफ और देवांगना के लिए है।
शांतिपूर्ण विरोध को नागरिकों का हक मानते हुए हाईकोर्ट तीनों को 50-50 हजार का मुचलका देने को भी कहती है। चलो, वो भी ठीक। पासपोर्ट जमा कराने को भी कह दिया, ये भी ठीक।
लेकिन सबूतों के साथ छेड़छाड़ न करें, किसी गवाह को धमकाएं नहीं, ये अलग से कहने की क्या जरूरत थी।
ये तो हर मुजरिम पर बाइ डिफ़ाल्ट लागू होता ही है। किस मुलजिम को गवाहों को धमकाने और सबूतों से छेड़छाड़ की छूट होती है?
यह हिदायत अलग से देने का मतलब ही यह है कि अदालत इन्हें पहले से ही ज्यादा खतरनाक मानती है। तो, मसला ये कि बिना वजह तीनों एक साल जेल में रखे गए और कहीं से कोई रेमेडी इन्हें नहीं मिली।