अगर आप 17 मई तक भारत में कोरोना वायरस का संक्रमण खत्म होने और लॉकडाउन खुलने की उम्मीद लगाए बैठे हैं तो आप मोदी सरकार के झांसे में आ चुके हैं।
कोरोना का कहर इतनी जल्दी खत्म होने वाला नहीं है। मोदीजी और उनकी पलटन आपको झांसा दे रही है। एम्स के डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया ठीक कह रहे हैं। अगले महीने यानी जून और जुलाई में भारत कोरोना के कारण सबसे ज्यादा मौत और तबाही देखेगा।
यानी रेड जोन में सख्ती जारी रहेगी। साथ ही इस बीच, वही तमाम लापरवाहियां भी होती रहेंगी, जो फिलहाल हो रही हैं।
देश में एक बार फिर 3500 से ज्यादा मरीज सामने आए हैं। 89 मौत हुई है।
भारत कुल मरीजों के मामले में चीन से केवल 30 हजार ही पीछे है। 17 मई तक शायद हम चीन से भी आगे होंगे।
देश में पिछले महीने तक 12 करोड़ से ज्यादा लोग नौकरियां गंवा चुके हैं। कोरोना का कहर अगर लंबा खिंच रहा है तो अभी राहत पैकेज की जल्दी उम्मीद करना बेकार है, क्योंकि देश का तकरीबन आधा कारोबार ही ठप है। इंडस्ट्री पैकेज लेकर करेगी क्या ? यहां तक कि अनिल अंबानी जैसे अरबपति कारोबारी ने भी अपने कर्मचारियों की तनख्वाह रोक ली है।
मोदी सरकार के सामने सबसे बड़ा सवाल यही है कि बंद पड़े सिस्टम को रिस्टार्ट कब और कैसे करें? बरसात के मौसम में मजदूर वापस लौटने से रहे।
उधर, बीते 44 दिन से घरों में कैद लोग भी अब उकताने लगे हैं। बेरोजगारों को इस बात की चिंता हो रही है कि उन्हें आगे चलकर अपनी क्षमता और कौशल से कमतर काम तलाशना पड़ेगा और वह भी बेहद कम तनख्वाह में।
क्या होगा देश का ? अभी भारत में अपराध की दर 80 फीसदी कम है। कहीं ऐसा न हो कि निराश अवाम सड़क पर उतरकर लूटपाट करने लगे और अपराध का ग्राफ 10 गुना ऊपर आ जाए।
यह चिंता इसलिए, क्योंकि कोरोना की चपेट में आए 201 देशों में भारत ही अकेला ऐसा देश है, जिसने दान लेने के लिए झोली फैलाई है।
यह नौबत इसलिए आई, क्योंकि नोटबंदी का मास्टर स्ट्रोक असंगठित क्षेत्र के 90 फीसदी व्यापार को तबाह कर गया।
अगर मोदी जी अभी भी यह सोच रहे हैं कि कोरोना काल में बदनाम हुए चीन से पलटकर विदेशी निवेशक भारत में पैसा लगाएंगे तो वे बड़े मुगालते में हैं। निवेशक पहले अपने घर को दुरुस्त करेंगे।
लॉकडाउन खुलने के बाद पूरे देश को एक ऐसे प्रधानमंत्री की उम्मीद है, जिसे यह मालूम हो कि देश के विकास में पैसा कहां और कैसे खर्च करना है, न कि अपने मंत्रियों, सरकार के फिजूल कामों में।
बस, एक सवाल- क्या सच में देश मजबूत हाथों में है ?
(ये लेख पत्रकार सौमित्रा रॉय के फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है)