बात व्यक्ति की नहीं विचारधारा की है। सही व्यक्ति गलत विचारधारा के साथ नहीं रह सकता है। अटल बिहारी कोई दूध पीता बच्चा नहीं थे जो पता नहीं था कि आरएसएस की विचारधारा क्या है?

अटल बिहारी का दौर हिन्दू कट्टरपंथी की राजनीति के हिसाब से शुरू ही हुआ था, स्वीकार्यता नहीं थी दूसरे दल साथ नहीं आना चाहते थे और अकेले भाजपा की औकात नहीं थी, इस कारण एक चोला ओढ़ना पड़ा जिससे उनकी राजनीति को स्वीकार्यता मिल पाए।

अटल बिहारी का मूल्यांकन व्यक्ति कविता जानता था, भाषण देता था, विरोधियों से नरम लहजे में बात करता था, बियाह नहीं किया था, गुस्सा कम करता था, इत्यादि जुमलों से नहीं होगा बल्कि अटल बिहारी ने गठबंधन की सरकार के बावजूद जो काम अपनी सरकार के कार्यकाल में करवाये उससे होनी चाहिए।

गोधरा कांड के समय अटल बिहारी प्रधान मंत्री थे, एक आध बार झिड़की के अलावा उन्होंने गुजरात की तत्कालीन मोदी सरकार पर कोई कार्यवाही तक नहीं किये। केंद्र सरकार ने उल्टे आरोपियों के बचने में ही मदद की।

अटल बिहारी के समय CBSE का पाठ्यक्रम बदलकर उसे भगवा करने की शुरुआत की गई। यूजीसी का फंड घटाना, छात्रों की छात्रवृत्ति कम की गई, नए हॉस्टलों के निर्माण पर रोक लगाए गए, देश के सभी शिक्षण संस्थाओं को स्वायत्तशासी बनाने के नाम पर जबर्दस्त फीस वृद्धि की गई।

तीसरे और चौथे वर्ग के कर्मचारियों की नियुक्ति पर रोक लगाई गई जिससे हॉस्टलों में मेस कर्मचारी तक भाड़े पर लिए जाने लगे। पूरे देश में सरकारी नौकरी कम की गई। UPSC में सीट घटाया गया।

देश में पहली बार एक विनिवेश मंत्रालय खोला गया जिसका काम ही था देश की कम्पनियों को बेच खाना। उस समय बड़े बड़े होटल कौड़ियों के दाम बेच दिए गए। ITDC जिसके सारे होटल शहर के केंद्र में थे और जिसकी जमीन अनमोल दाम वाली थी वे सभी कौड़ियों के भाव बिके। बोधगया आगरा जैसे पर्यटन स्थल जहां कमाई की भरपूर संभावना थी ऐसे जगहों के होटल कौड़ियों के दाम बिके।

और अटल बिहारी का सबसे बड़ा करतूत था कि इस आदमी ने देश के सभी कर्मचारियों का पेंशन खत्म करवा दिया।

अब खुद सोचिये कि क्या यह आदमी एक नेता के रूप में सही था। हो सकता है व्यक्ति अच्छा रहा हो हालांकि मैं यह भी नहीं मानता पर अटल बिहारी एक प्रधानमंत्री के रूप में निस्संदेह घटिया प्रधानमंत्री थे।

( ये लिख रत्नेश कुमार की फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है। लेख में व्यक्त किए गए विचार उनके निजी हैं )

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