– ‘सोनू सूद सर प्लीज़ हेल्प. ईस्ट यूपी में कहीं भी भेज दो सर. वहां से पैदल अपने गांव चले जाएंगे.’
– ‘पैदल क्यों जाओगे दोस्त? नबंर भेजो.’
अभिनेता सोनू सूद हमारी सरकारों से बढ़िया काम कर रहे हैं! आप कहेंगे कि यह ज्यादा हो गया. मैं कहूंगा कि नहीं, सरकारें उम्मीद या संभावना से ज्यादा नकारा साबित हुई हैं.
सोनू सूद के पास कोई विशेष अधिकार, कोई संसाधन, कोई अथॉरिटी नहीं है. उनके पास परिवहन, रेलवे, वित्त या गृह विभाग मेंं से कछ नहीं है. वे सरकार नहीं है. सरकार किसी देश या प्रदेश की संगठित ताकत का नाम है. सोनू सूद या कोई नागरिक उसके आगे कहींं नहीं ठहरता.
सवाल नीयत का है. सोनू सूद अपनी क्षमता भर लोगों को घर पहुंचा रहे हैं. सरकार इस पलायन की वीभत्स समस्या से एक हफ्ते मेंं निपट सकती थी. सरकार ने जनता को जनता नहींं समझा.
यूपी सरकार का उदाहरण लेंं. 20 करोड़ से ज्यादा जनसंख्या है. सरकार दस से बीस लाख लोगों को वापस लाई तो यह कोई उपलब्धि नहीं है. इससे ज्यादा लोग पैदल और साइकिल से आए होंगे जिनका कोई आंकड़ा ही उपलब्ध नहीं है. क्या सोनू सूद की तरह यूपी सरकार, या किसी अन्य सरकार ने कोशिश की? क्या केंंद्र ने कोशिश की?
हमारी सरकारें एक नागरिक की हैसियत के बराबर भी काबिल नहीं हैं. वे निहायत नकारा हैं और यह बात मैं दो महीने के अनुभव से कह रहा हूंं.
समस्या सरकारों या राजनीतिक दलोंं की नहीं है. हमारे यहां जनता को जनसेवक नहींं चाहिए, अवतार चाहिए. जनसेवक में हम अवतारी पुुरुष की छवि देखते हैं. लेकिन जब हमें जरूरत पड़ती है तो अवतारी पुरुष पाथर हो जाते हैं. अब पाथर की मूर्तियां जनता के प्रति जवाबदेह क्यों होने लगीं?
कोरोना तो पूरी दुनिया में है! जरा पता कीजिए कि दुनिया में और किस देश में ऐसा भयावह पलायन हुआ है जहां सैकड़ों लोग पैदल चलकर मर गए?
(ये लेख कृष्णकांत के फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है)