विधायक खरीदने के लिए पैसा था. विधायकों को लक्जरी बसों में लेकर भागने के लिए पैसा था. रैली के लिए पैसा था. चार्टर प्लेन से उड़ने के लिए पैसा था. दिल्ली में 20 हजार करोड़ का ‘सपनों का महल’ बनाने का भी पैसा है. बस मजदूरों की जान बचाने के लिए पैसा नहीं है. भूख से मर रहे लोगों को बचाने के लिए पैसा नहीं है.

85 प्रतिशत बनाम 15 प्रतिशत का फर्जी फॉमूर्ला डिस्कस होता रहा. जिन्हें घर पहुंचना था, वे पहुंच गए. बहुत से लोग अब भी पहुंच रहे हैं. लोग पैदल सात दिन में पहुंच गए, ट्रेन 9 दिन में पहुंच रही है.

जहां कांग्रेस की या दूसरे दलों की सरकारें हैं, उन्होंने भी कोई उदाहरण पेश नहीं किया, बस राजनीति​ करते रहे. चाहे महाराष्ट्र हो, छत्तीसगढ़, राजस्थान या ओडिशा. सत्ता का चरित्र ही ऐसा होता है. सरकारें जनता का खून चूसकर जनता के विरोध में काम करती हैं.

कभी केजरीवाल कहते थे कि सब नेता चोर हैं. आज आप उनको भी शामिल करते हुए कह सकते हैं कि सब चोर हैं. आप जितनी जल्दी समझ जाएं, अच्छा है कि जनता के सामने तमाम चुनौतियों के साथ सरकार खुद एक चुनौती होती है.

सरकार चलाने वाले लोग ऐसे जनसेवक हैं ​जिनके पास सत्ता और ताकत है. वे अपने को शासक समझते हैं. यह आपका दायित्व है कि आप उन्हें यह महसूस कराएं कि वे जनसेवक हैं. आप ऐसा नहीं करेंगे तो कभी पैदल चलकर मरेंगे, कभी भूख से मरेंगे.

जनता को समर्थ जनता बनने के लिए भक्ति छोड़कर तर्क का सहारा लेना होता है, सवाल करना होता है. जहां की जनता सवाल करती है, वहां की सरकार भत्ता दे रही है, जहां की जनता पूजा कर रही है, वहां की सरकार संदिग्ध कोष बनाकर चंदा बटोर रही है.

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