नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े के मुताबिक, 2019 में 42480 किसानों मजदूरों को आत्महत्या करने पर मजबूर होना पड़ा है।

हजारों मेहनतकश लोगों की आत्महत्या पर चुप्पी साधने वाले टीवी मीडिया पर तंज कसते हुए पत्रकार कृष्णकांत लिखते हैं-

2019 में भारत के 42,480 किसानों और दिहाड़ी मजदूरों ने खुदकुशी की. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ने ये आंकड़ा जारी किया है. इकोनॉमिक टाइम ने बताया ​है कि पिछले साल के मुकाबले इसमें 6 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है।

एनसीआरबी के मुताबिक 2019 में कृषि क्षेत्र से जुड़े 10,281 लोगों ने आत्महत्या की, जिसमें 5,957 किसान और 4,324 खेतिहर मजदूर शामिल हैं।

जब जीडीपी -23.9 फीसदी पर पहुंच गई है, उस समय अकेला कृषि सेक्टर है जो फायदे में है और 3 फीसदी से ज्यादा की दर से विकास कर रहा है। जाहिर है कि अब भी भारत में कृषि क्षेत्र ही है जो अर्थव्यवस्था की रीढ़ बना हुआ है।

एक खुदकुशी पर एक महीने तक चरस बोने वाले चैनलों ने इस मसले पर कभी कोई डिबेट नहीं कराई। अब जब ये डरावना आंकड़ा सामने आया है, तब भी इस पर कोई बहस नहीं होगी. ऐसा इसलिए है क्योंकि पूरी व्यवस्था को ऐसे डिजाइन किया जा रहा है कि असल मुद्दों पर कोई बहस न हो।

असल मुद्दों से ध्यान हटाने में नेता और पार्टी का फायदा है, लेकिन आपका क्या फायदा है? चाहे किसानों की आत्महत्या हो, उद्योगों की बर्बादी हो या करोड़ों नौकरियों का जाना हो, यह नुकसान आपका है.

जनता मरती रहेगी और नेता अपनी छवि चमकाने के लिए फालतू मसलों में आपको उलझाएगा और अपने को मसीहा बताएगा। इस फर्जीवाड़े में बर्बादी जनता की है।

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