आइए, आज 17 जनवरी को रोहित वेमुला का स्मृति दिवस मनाते समय हम कुछ चीज़ों को नहीं भूलने का वादा करें।
सबसे पहले हमें यह नहीं भूलना है कि रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या करने वाले वीसी पी. अप्पा राव को मोदी सरकार ने तमाम साज़िशें करके जेल जाने से बचाया। इस काम में उनकी मदद करने वाले मंत्रियों बंडारू दत्तात्रेय और स्मृति ईरानी के ख़िलाफ़ भी कानूनी कार्रवाई नहीं होने दी गई।
इस बात को भी नहीं भूलना है कि रोहित वेमुला के लिए न्याय की माँग कर रही राधिका वेमुला को दिल्ली की सड़कों पर घसीटा गया।
भूलना तो यह भी नहीं है कि मोदी सरकार ने सैकड़ों सरकारी स्कूल बंद करके और विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा की सीटों में कटौती करके न जाने कितने रोहितों के सपनों की हत्या कर दी है।
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यह बात भी भूलने लायक नहीं है कि जब रोहित वेमुला हमारे बीच नहीं रहे तब दोषियों को सज़ा देने के बदले सरकार ने सारा ध्यान इस बात पर लगाया कि रोहित वेमुला की जाति क्या थी।
काश रोहित वेमुला के जाने के बाद उन्हें “भारत माता का लाल” कहने वाले मोदी जी को उनकी माँ राधिका वेमुला में भारत माता दिखी होतीं। अगर ऐसा होता तो वे आँखों में आँसू और हाथ में संविधान लिए न्याय की माँग करती राधिका अम्मा को संसद में और सड़कों पर बार-बार अपमानित नहीं होने देते। उनकी पार्टी के लोगों ने राधिका वेमुला पर झूठ बोलने का आरोप लगाया।
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तमाम बातों के बीच एक सवाल रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या के बाद उन्हें न्याय दिलाने वालों से भी करना चाहूँगा। उन्होंने तेलंगाना चुनावों में इस सांस्थानिक हत्या को मुद्दा क्यों नहीं बनाया? क्या यह रोहित वेमुला की स्मृति का अपमान नहीं है?
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कन्हैया कुमार