किसी नौकरी को पाने के लिए जरूरी है कि आपके पास उस नौकरी लायक योग्यता हो। जिस भी अभ्यार्थी में वो योग्यता होती है उसे नौकरी मिल जाती है। लेकिन देश के प्रधानमंत्री और बीजेपी के पोस्टर बॉय नरेंद्र मोदी पर ये नियम लागू नहीं होता।

शायद इसलिए क्योंकि वो कोई आम इंसान नहीं हैं बल्कि अवतार हैं। ऐसा खुद महाराष्ट्र के बीजेपी प्रवक्ता अवधूत वाघ ने ट्वीट कर कहा था। ‘सम्मानीय प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी भगवान विष्णु का ग्यारहवां अवतार हैं’

तो अवतार होने का प्रिविलेज लेते हुए नरेंद्र मोदी बिना किसी योग्यता, परीक्षा, प्रशिक्षण… आदि के चौकीदार बन गए। इसके लिए उन्हें बस अपने नाम के ‘चौकीदार’ लगाना पड़ा और वो दुनिया ने उन्हें ‘चौकीदार’ मान लिया है।

कितना सिंपल है न। अगर ये शक्ति सबके पास हो तो कितना अच्छा होता। किसी गरीब को इंजीनियर बनना होता वो अपने नाम के आगे ‘इंजीनियर’ लगा लेता और बन जाता इंजीनियर। डॉक्टर, प्रोफेसर, मंत्री, सांसद, पत्रकार, दलाला जिसे जो मर्जी वो बन जाता। मतलब एक झटके में गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी खत्म।

ख़ैर ये प्रिवेलेज सबके के लिए नहीं है। ये सिर्फ ‘अवतार’ नरेंद्र मोदी, उनके मंत्रीगण, समर्थक और स्पेशल भक्तों के लिए संभव है।

अब मामला ये कि नरेंद्र मोदी के चौकीदार बनते ही सोशल मीडिया के सारे ‘कट्टर हिंदू’, ‘राष्ट्रवादी’, ‘देशभक्त’… आदि चौकीदार बन गए हैं। इसतरह सड़क से लेकर संसस तक और ट्विटर से लेकर टिंडर तक चौकीदारों की बाढ़ आ गई है।
इसमें से कई प्रधानमंत्री द्वारा मान्यता प्राप्त चौकीदार भी हैं। कहने का मतलब सोशल मीडिया पर कई ऐसे हिंसक, महिला विरोधी, जातिवादी, रंगभेदी चौकीदार भी हैं जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फॉलो करते हैं।

ऐसी ही एक चौकीदार हैं ‘आर्ची’। मोदी जी की जबर फैन। शायद इसलिए ट्विटर पर मोदी इन्हें फॉलो भी करते हैं। आर्ची के हिसाब से दुनिया में सुई से लेकर सुरंग तक सब मोदी जी बनाया। कुल मिलाकर भक्त हैं। अब इतना तो सब जानते हैं कि चौकीदार बनने के लिए भले ही कोई योग्यता न रही हो लेकिन भक्त बनने के लिए योग्यता तय है। हर भक्त का कम से कम जातिवाद, ब्राह्मणवादी, रंगभेदी, महिला विरोधी होना अनिवार्य है।

‘चौकीदार आर्ची’ इनसभी योग्यताओं से परिपूर्ण हैं। 31 मार्च को इन्हीं योग्यताओं के मिश्रण से निकला आर्ची का एक ट्वीट सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बना हुआ है। एक जानी-मानी पत्रकार इस ट्वीट पर प्रतिक्रिया देने को मजबूर हो गई हैं।

ट्वीट क्या है-

चौकीदार आर्ची ने 31 मार्च को प्रियंका गांधी की एक तस्वीर साझा करते हुए लिखा ‘धूप में दौड़ा दौड़ा कर, मोदी इसको मायावती बना देगा…’

इस ट्वीट को चार हजार से ज्यादा लोगों ने लाइक किया है, डेढ हजार से ज्यादा लोगों ने रिट्वीट किया है और लगभग एक हजार कमेंट होने वाले हैं। इन आंकड़े से इस ट्वीट के विशाल रीच का पता चल जाता है। और ये भी साफ हो जाता है कि इस ट्वीट में कुछ तो ऐसा है जिसे लोग बड़ी मात्रा में पसंद/नापसंद कर रहे हैं।

तो ‘चौकीदार आर्ची’ कहना क्या चाहती हैं?

दरअसल ‘चौकीदार आर्ची’ बताना चाहती हैं कि मोदी से विपक्षी दल कितना परेशान है। लेकिन इस बात कहने के तरीके ने आर्ची की जातिवादी, मनुवादी, महिला विरोधी और रंगभेदी मानसिकता का पोल खोल दिया है।

मोदी समर्थक होने के बावजूद आर्ची कांग्रेसी प्रियंका के रंग की चिंता कर रही हैं। उनके लिए मायावती का ‘काला’ रंग घृणित है! वो मायावती के रंग पर हंस रही हैं। आर्ची जैसे लोगों ही हर रोज नए तरीके से ये स्थापित करने में लगे हैं कि गोरे लोग बेहतर, अक्लमंद और श्रेष्ठ होते हैं और काले लोग उनसे कमतर। और ऐसे लोगों को फॉलो कर नरेंद्र मोदी जाने-अनजाने इस मानसिकता को बढ़ावा दे रहे हैं, साथ ही पोषक की भूमिका में भी नजर आ रहे हैं।

रंगभेद का ये पूरा जंजाल भारद जैसे देश फैला हैं, जिस देश का कोई भी व्यक्ति अंतरराष्ट्रीय मान्यताओं के हिसाब से गोरा नहीं है। वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल इस विषय पर लिखे एक विस्तृत लेख में बताते हैं कि भारत में जिनको गोरा कहा जाता है उनका रंग दरअसल गेहुंआ है। लेकिन उनमें से भी जो लोग शारीरिक श्रम ज्यादा करते हैं और खासकर धूप में रहते हैं, उनका रंग ज्यादा गहरा हो जाता है।

चूंकि मेहनत करने वालों की तुलना में मेहनत का काम न करने वाले श्रेष्ठ माने जाते हैं, इसलिए स्वाभाविक है कि मेहनत करने वालों का रंग काला हीनताबोधक है और सफेद रंग श्रेष्ठता का प्रतीक।

अब ये बात सबको पता है कि भारत में सबसे अधिक शारीरिक श्रम कौन सी जातियां करती हैं। इसलिए काले भी वहीं हैं। और इस तरह भारत में रंगभेद सिर्फ रंगभेद नहीं बल्कि जातिवादी भी है।

आर्ची के ट्वीट में रिट्वीट करते हुए वरिष्ठ पत्रकार कादंबिनी शर्मा ने लिखा है ‘नक़ली ‘चौकीदार’ की असलियत खुल ही जाती है। दो महिला नेताओं के लिए इनकी घटिया सोच बता रही है इनकी असलियत।’

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