मीडिया ने जिस तरह से पिछले तीन-चार सालों में लोकतंत्र की जड़ों को काटने का काम किया है वो साफ़ दिखलाता है कि ये मीडिया इस देश के जनतंत्र पर विश्वास नहीं करता है. लेकिन दुर्भाग्यवश आज भी लोग मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ ही मानते हैं.

आज के न्यूज़ एंकर, न्यूज़ वेबसाइट्स ने अपने ख़बरों में लोकतंत्र के बहुत ही बुनियादी शब्दों को सिरे से ख़ारिज करना और उनकी हत्या करना तेज़ी शुरू कर दिया है. तमाम ऐसे शब्द जो हमारी जनतंत्र को मजबूत करता है. मसलन धर्मनिरपेक्षता, बोलने की आज़ादी ,सरकार से सवाल करना, इन सभी शब्दों को आज गाली बना दिया है .

ऐसे ही नागरिकों के सवैंधानिक अधिकारों में से एक मौलिक अधिकार है. जिसमे उनकी अपने जीवन में व्यक्तिगत और निजी फैसलों को लेनें की आज़ादी हैं. एक नागरिक के तौर पर वें अपने निजी फैसलें कर सकतें हैं, जबतक की उस फैसले से किसी अन्य को नुकसान न हो.

कोई इन्सान विवाह के बाद अगर अपने साथी से खुश नहीं है, और वह अपना पक्ष कानूनी रूप से रखने के लिए आदालत में तलाक़ के लिए अर्जी डालता है तो मीडिया को इतनी हाय-तौबा मचाने की आखिर क्या जरूरत आन पड़ी है!

व्यवहारिक रूप से तो इस मसले में दूसरा पक्ष यानी तेज प्रताप की पत्नी कोर्ट में अपना पक्ष रखेंगी कि जिन आरोपों के आधार पर उनका साथी उनसे तलाक लेना चाहता है वह इसके बारे में क्या कहतीं है और उनका पक्ष क्या है , मामला बस इतना ही है

तेजप्रताप और ऐश्वर्या राय के आपसी विवाद के बीच मीडिया रात-दिन इस मामले को, जो कि बहुत ही व्यक्तिगत मामला है, उसे मिर्च-मसाला लगाकर क्यों परोस रहा है? यह मीडिया के अंदर के खोखलेपन को ही दर्शाता है .

एक नवंबर को जब ये खबर मीडिया को पता चली कि तेजप्रताप ने अपनी पत्नी से तलाक लेने के लिए कोर्ट में अर्जी दी है, तो यह खबर पब्लिक डोमेन आती है. लेकिन जब आप उन खबरों के हैडलाइन से गुजरेंगें तो आपको लगेगा की मीडिया कितने असवेंदनशील तरीके से किसी के व्यक्तिगत मामले को लोगों तक पहुंचाता है. उन खबरों के विस्तार में अगर आप जायेंगे तो ऐसे- ऐसे शब्दों के प्रयोग किये गए है जिनका प्रयोग हम और आप आपस के बातचीत में भी किसी तीसरे के लिए नही करते हैं.

जैसे दैनिक जागरण ने इस गैरजरूरी खबर को तीन दिनों से फ़ॉलोअप कर रहा है, और हैडलाइन दिया-

’लालू के ‘कन्हैया’ तेजप्रताप की राधा नही बन पायीं ऐश्वर्या. कहीं यह वजह तो नहीं’…

 

 

अगली खबर की हेडलाइन– ’जिस ऐश्वर्या से तलाक लेना चाहते हैं तेजप्रताप, कभी उनके लिए लिखा था आज से तेरी’….

 

तीसरी हेडलाइन- ‘’तेजप्रताप नहीं बनना चाहते थे ऐश्वर्या के राँझा, FB पर लिखा था-इश्क और क्रांति ‘’….

इन सभी हेडलाइंस से गुजरने ने बाद आप देख सकते हैं कि जो सवाल और मुद्दे लोगों से सरोकार रखते हैं उसको मीडिया किस चलाकी से हमसे दूर करते जा रहा है.

एक नवंबर को पटना में और कितनी बड़ी घटनाएँ हुई लेकिन इस खबर को चार दिन के बाद भी दिखाते रहना, और ऐसी हेडलाइंस, जिनके न कोई सर-पैर है और ना ही जनता से उन ख़बरों का कोई सरोकार हो, सवाल खड़े करता है ,

लेकिन मीडिया आपको यही परोस रहा है. जिससे आपके विवेक को शिथिल किया जा सके . और आप उन जरूरी सवालों से बहुत दूर पीछे छूटते जाये जिससे आपके सरोकार हो और आपके जीवन पर असर पड़ता हो. जैसे भूख, बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य इस सभी मसलों से जुड़े सवालों को अपने खबरों से एकदम गायब कर दिया जाना.

यह दर्शाता है कि मीडिया लोगों में किस तरह की ईच्छा निर्मित कर रहा है .

यह सवाल इनसे जरुर पूछा जाना चाहिए की दिन रात अपने चैनेल और वेबसाईट की खबरों में ‘हिन्दू-मुस्लिम’ कर के इनका पेट नही भरता कि ये लोगों के निजी जीवन को लेकर इस हद तक गिर गये हैं.

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