जनता पर संकट था तब कई नेता गायब थे. हमारे गृहमंत्री भी लंबे समय तक गायब रहे. ट्रंप की यात्रा के बाद ऐसा लगा जैसे वे मार्गदर्शक मंडल में चले गए. कई रिपोर्ट में सवाल उठे कि आखिर गृहमंत्री जी कहां गायब हैं. कई लोग उनकी गंभीर बी​मारी का कयास लगाने लगे थे. हालांकि, बाद में गृहमंत्री ने खुद ही इसका खंडन किया कि वे बीमार नहीं हैं और पूरी तरह सलामत हैं.

यही समय था जब लोग पैदल अपने घर भाग रहे थे. भूख से मर रहे थे. कई लोग पैदल चलकर मर गए. चारों तरफ अफरातफरी थी, लेकिन देश का गृह विभाग अपने मुखिया समेत गुमशुदा हो गया था.

अब पहले से मौतें ज्यादा हैं, संक्रमण ज्यादा है, लेकिन अब लोग थोड़े सहज होकर सामना कर रहे हैं.

वही जो नेता गायब थे, जिनका लंबे समय तक कहीं पता नहीं चला, वे अब वोट लेने के लिए वर्चुअल रैली ठेल रहे हैं. जिन वोटरों की जान बचाने की जरूरत नहीं समझी गई, उनके वोट फिर से जरूरी होने जा रहे हैं.

जो हुआ वह कोई विचित्र बात नहीं है. ऐसा पहले भी हुआ है, आगे भी होगा. दुखद यह है कि जनता समझने को तैयार नहीं है कि उसका राजनीतिक नेतृत्व जवाबदेह और संवेदनशील होना चाहिए. जवाबदेही लेना कठिन कार्य है. अगर आप उन्हें मजबूर नहीं करेंगे, हिसाब नहीं मांगेंगे तो नेता दिनोंदिन ज्यादा धूर्त और जहरीले होते जाएंगे.

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