ऋषिकेश शर्मा
अमित शाह की कथित कोरोना के ख़िलाफ़ जागरूक करने वाली वर्चुअल रैली कल से लगातार विपक्ष और इंटरनेट यूज़र्स के निशाने पर है। अमित शाह की इस प्रस्तावित रैली के बारे में कहा गया था कि इसका चुनाव से कोई संबंध नहीं होगा।
इस रैली का आयोजन बस कोरोना के ख़िलाफ़ जागरूकता फैलाने के लिए ही होगा। युद्धस्तर पर इसको लेकर तैयारियां हुई जिसमें बिहार के सभी बूथों पर बड़े-बड़े एलईडी स्क्रीन लगाए गए। इसकी संख्या कुल 72 हज़ार बताई जा रही है।
अमित शाह ने अपने भाषण के शुरुआत में कहा कि इसका चुनाव से कोई संबंध नहीं है, यह बिहार की जनता के साथ बस एक जनसंपर्क है। लेकिन जैसे ही धीरे-धीरे भाषण बढ़ा उन्होंने पुलवामा, सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर लालू परिवार की तरफ़ बढ़ना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे वो आगामी बिहार विधानसभा पर भी आ गए जहाँ उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार के नेतृत्व में इस बार NDA सूबे में दो तिहाई बहुमत प्राप्त कर फिर से सरकार बनाएगी।
कोरोना के ख़िलाफ़ इस जागरूकता रैली में बीस फीसदी बातें भी कोरोना पर नहीं हुई। पत्रकार उत्कर्ष कुमार सिंह ने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा है, कि इस रैली में हुए कुल खर्च का रकम इतना बड़ा था कि इससे करीब 11 लाख प्रवासी मजदूरों को उनके राज्य वापस भेजा जा सकता था।
लॉकडाउन के दौरान करीब दो महीने बाद ट्रेन चलाने और उसके बाद भी मजदूरों से महंगे किराये वसूलने की चौतरफा किरकिरी हुई थी। ऐसे में कल की इस रैली के बाद सोशल मीडिया पर लोग जमकर सरकार की आलोचना कर रहे हैं।
राज्यसभा सांसद मीसा भारती ने ट्वीट कर लिखा कि, “72000 LED स्क्रीन लगाने के लिए पैसे हैं, चौतरफा परेशानी, भूखमरी और सरकारी लाठी झेल रहे मजदूरों का रेल भाड़ा देने के लिए पैसे नहीं हैं!”
अखिलेश यादव ने भी भाजपा को निशाना पर लेते हुए लिखा कि, “भाजपा बिहार में दूर से ही डिजिटल चुनावी रैली कर रही है क्योंकि उसने देश और देशवासियों की जो बर्बादी की है उसकी वजह से वो जनता के बीच सीधे जाने के लायक बची ही नहीं है. करोड़ों लोगों की ज़िंदगी को रास्ते पर लाने की तैयारी के बजाय भाजपाई चुनाव की तैयारी में जुट गये. शर्मनाक!”