एक बीजेपी नेता हैं. नाम है बलबीर पुंज. बता रहे हैं कि ‘दिल्ली के मजदूर पैसा, भोजन आदि की असुरक्षा के चलते नहीं भाग रहे हैं. वे अपने परिवार के साथ छुट्टी मनाने के लिए भाग रहे हैं.’
इसे आप अश्लीलता और बेशर्मी की पराकाष्ठा कह सकते हैं. बलबीर पुंज बुजुर्ग हैं, राज्यसभा सांसद हैं, अपने को सोशल और पॉलिटिकल कमेंटेटर कहते हैं. ऐसा नहीं है कि वे देश के बारे में नहीं जानते. लेकिन उम्र गुजरी है चाटुकारिता में. इसलिए अपने तंबू से बाहर नहीं देख पा रहे हैं.
भाग रहे लोगों में असंख्य बच्चे हैं, बूढ़े हैं, गर्भवती महिलाएं हैं, बीमार लोग हैं, गोद में छोटे से बच्चे को लेकर पैदल चल रही माएं हैं, भीख मांग कर पेट भरने वाले हैं, फुटपाथ पर सोकर मजूरी करने वाले हैं. उनके पास रहने को घर नहीं हैं. रैन बसेरे में जगह नहीं है. उनके पास खाने को नहीं है.
क्या मध्यवर्ग भी कभी ऐसी यात्रा करता है कि 1000 किलोमीटर पैदल बिना खाए पिए चलता रहे? वे किसी अनजाने डर से भाग रहे हैं. लेकिन भाजपा का एक वरिष्ठ नेता, जिसने भारत की गरीबी देखी होगी, जिससे अपेक्षाकृत ज्यादा संवेदनशीलता की अपेक्षा की जाती है, वह इन गरीब लोगों पर ऐसा अश्लील फिकरा कस रहा है.
नेतृत्व की परीक्षा संकटकाल में ही होती है. इस संकट काल में कोई नेता जनता का मजाक उड़ा रहा है, कोई रामायण देखते हुए अपनी फोटो जारी कर रहा है, कोई घंटी बजाते हुए वीडियो बनवा कर जारी कर रहा है, कोई आरती और श्लोक शेयर कर रहा है. यही इनका महान नेतृत्व है.
बलबीर पुंज जी, हम आपके इस अनर्गल बयान पर शर्मिंदा हैं कि आप हमारी संसद में बैठे हैं.
( ये लेख कृष्णकांत के फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है )