बेहतर क्या?
बल्कि ज्यादा बुरा कौन?

फेक वेबसाइट्स या चैनल-अखबार?

बहुजनों, एससी-एसटी-ओबीसी-माइनॉरिटी के लिए क्या फेक न्यूज और क्या असली न्यूज. जैसे फेक वेब साइट वैसे ही चैनल और अखबार.

दोनों ब्राह्मण-बनियों के कंट्रोल में हैं.

फेक न्यूज साइटों से ज्यादा नुकसान तो चैनल और अखबार करते हैं जो दावा करते हैं कि उनकी खबरें सही होती हैं.

मंडल कमीशन के खिलाफ राममंदिर का पूरा आंदोलन फर्जी साइट्स ने नहीं, अखबारों और चैनलों ने चलाया.

आरक्षण के खिलाफ माहौल अखबार और चैनल बनाते हैं.

दंगे चैनल और अखबार कराते हैं. फेक वेबसाइट्स भी कराते हैं.

जाति जनगणना के खिलाफ अभियान चैनलों और अखबारों ने चलाया.

एससी-एसटी एक्ट के खिलाफ माहौल चैनल और अखबार बनाते हैं.

मूल मुद्दों से ध्यान हटाकर गाय-पाकिस्तान-बगदादी की ओर बहस अखबार और चैनल ले जाते हैं. फेक वेबसाइट्स की इतनी औकात नहीं होती.

हर चुनाव से पहले “ओपिनियन मेकिंग पोल” फेक साइट नहीं, अखबार और चैनल चलाते हैं.

बहुजनों ने ब्राह्मण-बनिया मीडिया और पत्रकारों पर शक करना सीख लिया है. वे फेक न्यूज और व्यूज को पहचानने लगे हैं.

नजर खुली रहेगी, तो दोनों तरह के खतरों से बच पाएंगे.

लेख- वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल के फेसबुक पेज से साभार

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