डॉ. कफील रिहा कर दिए गए हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने NSA के तहत हुई उनकी गिरफ्तारी को गैरकानूनी करार दिया है। डॉ. कफील पिछले 6 महीने से जेल में हैं।

6 महीने छोटी-मोटी संख्या नहीं है। अपनी बात रखने की सजा अगर इस देश में 6 महीने की होगी तो कितने नागरिक अपनी बात रख पाएंगे? ये नागरिकों को डराना नहीं हुआ?

अदालत के फैसले ने ये तो जाहिर कर दिया कि बाबा साहब अंबेडकर का संविधान योगी आदित्यनाथ जैसे संप्रदायिक नेताओं से ऊपर था और ऊपर रहेगा।

लेकिन यहां एक बात है डॉ. कफील की रिहाई तो हुई है लेकिन उन्हें न्याय नहीं मिला है।

उन्हें न्याय तब ही मिलेगा जब उनपर जुर्म करने वाले प्रदेश के मुख्यमंत्री पर एक नागरिक को टॉर्चर करने का केस चलाया जाएगा। नहीं तो इस देश के हजारों निर्दोष नागरिक इसी तरह टारगेट किए जाते रहेंगे।

आपको बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस गोविंद माथुर और जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा, अलीगढ़ डीएम की तरफ से 13 फरवरी 2020 को डॉ कफील खान के खिलाफ की गई रासुका की कार्रवाई गैरकानूनी है।

कोर्ट ने आगे कहा- डॉक्टर कफील खान की स्पीच ने हिंसा को बढ़ावा नहीं दिया है, गलत बताया है। इस स्पीच में राष्ट्रीय एकता की बात की गई है।

हाईकोर्ट ने आदेश सुनाते हुए कहा कि रासुका के तहत डॉक्टर कफील को हिरासत में लेना और हिरासत की अवधि को बढ़ाना गैरकानूनी है। डॉ कफील खान को तुरंत रिहा किया जाए।

(ये लेख पत्रकार श्याम मीरा सिंह के फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है)

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