नेहरू की आलोचना का वह अध्याय बड़ा चर्चित है जब लोहिया ने संसद में कहा था कि एक तरफ देश के गरीब आदमी की प्रतिदिन की आय तीन आना है, वहीं प्रधानमंत्री का दैनिक खर्च पच्चीस हजार रुपये है.

क्या आज का हाल उससे अलग है? देश को जानना चाहिए कि जब देश के प्रधानमंत्री ने एक मोर को दाना चुनाते हुए वीडियो पोस्ट किया, उसी दिन आगरा में एक पांच साल की बच्ची सोनिया भूख से मर गई.

बच्ची की मां का कहना है, ‘मैं उसके खाने के लिए कुछ जुगाड़ नहीं कर पाई. वह दिन-पर-दिन कमजोर होती जा रही थी. उसे तीन दिन से बुखार था और अब मैंने उसे खो दिया.’

मामला आगरा के बरौली अहीर ब्लॉक का है. मां शीला देवी का कहना है कि उसकी जान भूख से गई है. महीने भर से घर में राशन नहीं था. करीब 15 दिन पड़ोसियों से मांगकर गुजारा किया. पिछले कुछ दिनों से घर में एक दाना नहीं था. खाना न मिलने के कारण बच्ची बहुत कमजोर हो गई थी. तीन दिन पहले उसे बुखार आया. पीली पड़ गई थी, लग रहा था कि उसमें खून की कमी हो गई है. घर में पैसे नहीं ​थे तो डॉक्टर के पास भी नहीं ले जा सके.

शीला देवी मजदूरी करती हैं. छह महीने से कोई काम नहीं मिला है. इस कारण घर में तंगी आ गई. राशन डिपो पर मुफ्त में गेहूं-चावल मिल रहा है लेकिन इस परिवार का राशन कार्ड नहीं बना है. इस कारण उन्हें यह नहीं मिल पाया.

अधिकारियों का कहना है कि बच्ची की मौत भूख से नहीं, बुखार से हुई है. आज के करीब पंद्रह बरस पहले पहली बार जब मैंने भूख से मौत की खबर पढ़ी थी, तब भी प्रशासन का यही कहना था कि मौत से भूख से नहीं, फलां बीमारी से हुई है. भूख से मौत के हर मामले में यही सुनते सुनते मेरी आधी उमर गुजर चुकी है.

मेरी जानकारी में शायद ऐसा कोई केस हो जहां प्रशासन ने भूख से मौत होना स्वीकार किया हो. घर में अनाज नहीं था, उन्होंने राशन भी पहुंचा दिया और पल्ला भी झाड़ लिया. वे जो रिपोर्ट बना देंगे वही सर्वमान्य होगी.

सोनिया अकेली नहीं है. करोड़ों के रोजगार छिने हैं तो सैकड़ों मरेंगे भी, बस उनकी खबर लेने का वक्त किसी के पास नहीं है. देश एक महीने से सुशांत सिंह राजपूत को न्याय दिलाने में बिजी है. जब तक जनता फालतू के मुद्दों में उलझी रहेगी, कुर्सी सुरक्षित रहेगी.

जर्मनी के मीडिया संस्थान डायचे वेले ने एक खबर छापी है कि कोरोना महामारी के कारण हर महीने 10,000 से अधिक छोटे बच्चों की मौत भूख के कारण हो रही है. यूएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भोजन की आपूर्ति में कमी के कारण एक साल में 1,20,000 बच्चों की मौत हो सकती है. इसमें गरीब देश सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे.

क्या आपको मालूम है कि भारत उन देशों में है जहां कुपोषण से सबसे ज्यादा बच्चे मरते हैं? हर महीने इन दस हजार मौतों में से भारत में कितनी हैं, यह संख्या आप जानते अगर आंकड़ा छुपाने की जगह जारी करने की मंशा होती!

यहां तो बागों में बहार है! पानी बरस रहा है. मोर नाच रहा है. मोर चुन रहा है. मन बहल रहा है.

(ये लेख पत्रकार कृष्णकांत के फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है)

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