हाथरस केस में पीड़िता की बदक़िस्मती ये है कि मामले में कहीं हिन्दू-मुस्लिम एंगल नहीं है। काश होता तो इंसाफ़ मिलने में देर न लगती। मुद्दा, राष्ट्रीय मुद्दा बन जाता, उसकी आबरू देश की आबरू हो जाती।

हफ्तों तक चैनलों पर एंकर चीख रहे होते, रिपोर्टर्स पल-पल की जानकारी दे रहे होते कि पार्थिव शरीर वाली एम्बुलेंस फलां जगह से निकल चुकी है और फलां जगह पहुंचने वाली है। बंग्ले का अवैध छज्जा टूटने को राष्ट्रीय मुद्दा बना देने वाली ‘देश की बेटी’ ट्वीट पर ट्वीट कर रही होती।

मुख्यमंत्री ज़हर बुझे हुए बयान जारी कर रहे होते, नए कानून बन रहे होते। मृतका का अंतिम संस्कार पूरे सम्मान के साथ होता जिसे LIVE दिखाया जाता।

लेकिन अफसोस कि हिन्दू-मुस्लिम नफ़रत का स्कोप मुद्दे में नहीं है। टेबल बजाने का, चीखने का, देशद्रोही कहने का, पाकिस्तान भेजने का, रासुका लगाने का, क़ब्र खोद कर उनकी महिलाओं से बलात्कार करने का स्कोप नहीं है।

वीडियो वैल्यू नहीं है, ऑडियो वैल्यू नहीं है, हैशटैग नहीं है। तो क्या है? कुछ भी नहीं। लिहाज़ा रातों रात मृतका का शव पुलिस जला देती है। हिन्दू रीति रिवाजों के बग़ैर।

वो हिन्दू थी ही कहाँ, हिन्दू तो तब होती जब गुनाहगार मुसलमान होते। बूढ़ी माँ चीख़ती रह जाती है कि बेटी को आख़िरी बार घर की चौखट तक लाना चाहती है, लेकिन उसे डरा दिया जाता है।

गाँव वाले पुलिस की लाठी से धकिया दिए जाते हैं। ये नया भारत है, हमारे और आपके सपनों का भारत। मजबूत बहुमत वाला भारत। यहाँ रात के अंधेरे में इंसाफ को सरकारी चिता पर आग दे दी जाती है। और किसी को फ़र्क़ नहीं पड़ता।

पड़े भी क्यों ये तो जश्न का दिन है। बाबरी मस्जिद गिराने वाले बरी हो गए हैं। ये राष्ट्रीय गर्व का दिन है। जश्न मनाइए। आप सब को बहुत मुबारक हो।

(यह लेख जमशेद कमर सिद्दीकी की फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है)

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