कृष्णकांत

पत्रकार मनदीप पुनिया को किसान आंदोलन कवर करने के “महान अपराध” में पुलिस ने गिरफ्तार करके जेल भेज दिया है।

ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा की रिपोर्टिंग करने पर वरिष्ठ संपादकों एवं पत्रकारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर दी गई है जिसमें राजद्रोह जैसे आरोप हैं।

राजदीप सरदेसाई, मृणाल पांडे, विनोद जोस, जफर आगा, परेश नाथ और अनंत नाग के खिलाफ नोएडा पुलिस ने केस दर्ज किया।

द वायर के संपादक सिद्धार्थ वरदराजन ने 26 जनवरी को हिंसा के दौरान मारे गए युवक के पिता से बात की थी। इस महान अपराध में उनपर भी केस दर्ज कर दिया गया है।

ये बेहद शर्मनाक है कि रिपोर्टिंग करने पर पत्रकारों के खिलाफ राजद्रोह जैसे गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं।

पत्रकारों के खिलाफ जिस तरह की कार्रवाई हो रही है, वह इमरजेंसी से भी खतरनाक है।

जिस तरह के मामलों में कार्रवाई की जा रही है, उससे ये जाहिर है कि सरकार चाहती है कि देश में आलोचना करने वाला मीडिया न हो। सरकार को सिर्फ दंगाई गोदी मीडिया चाहिए।

दिन भर झूठ और नफरत फैलाने वाले किसी पत्रकार पर कभी कोई कार्रवाई नहीं हुई।

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने वरिष्ठ पत्रकारों पर इस तरह की कार्रवाई की कड़ी निंदा की है। गिल्ड ने कहा है कि यह मीडिया को डराने-धमकाने, प्रताड़ित करने और दबाने की कोशिश है।

पत्रकारों पर हमला जनता की आवाज़ पर हमला है। सरकार चाहती है कि उसका कहीं कोई काउंटर न हो।

किसान आंदोलन कवर करने वाले ऐसे पत्रकारों पर कार्रवाई हो रही है जिन्होंने सरकारी साजिशों की पोल खोली।

इस आंदोलन की असली रिपोर्टिंग छोटी वेबसाइटों, यूट्यूब चैनलों और सोशल मीडिया पर हुई। वरना गोदी मीडिया किसानों को ही बदनाम करने में लगा है। सरकार इन पत्रकारों को मुक़दमों से डराकर चुप कराना चाहती है।

क्या आपको ऐसा ही लोकतंत्र चाहिए जहां बोलने वाली आवाजें न हों, सिर्फ मुर्दे बसते हों?

(यह लेख पत्रकार कृष्णकांत की फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है)

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