राकेश टिकैत का रोता हुआ चेहरा देख लीजिए. उनके रोने का तमाशा देखने के लिए कम से कम हम-आप हैं. हो सकता है कि हम-आपको भी रोना पड़े और कोई तमाशा देखने वाला ही न बचे. वे जो घिरे हैं वे भारत के किसान हैं. जिन्होंने घेर रखा है वे इन्हीं किसानों के बेटे हैं.
जो घिरे हैं, उनमें से तमाम रिटायर्ड फौजी हैं. लेकिन इस देश की सियासत को रिटायर जवानों की नहीं, शहीद जवानों की जरूरत है. शहीदों की लाश पर चुनाव में वोट मिलता है.
इसलिए सियासत को तमाशा बनाने के लिए लाशों की जरूरत हैं, लेकिन जिंदा लोगों की जरूरत नहीं है.
रिटायर्ड जवानों पर यहां लाठी बरसती है और उन्हें खालिस्तानी बताया जाता है. कभी ओआरओपी के लिए तो कभी कृषि बिल वापस कराने के लिए.
टिकैत किसानों के बड़े नेता हैं, आज लाचार होकर रो रहे हैं. उनपर देश के खिलाफ षडयंत्र रचने का आरोप है.
जो पंजाब हरियाणा सबसे ज्यादा अनाज उगाते हैं, जिनके बेटे सबसे ज्यादा सेना में सेवाएं देते हैं, उनके बाप-दादाओं को अपराधी बनाकर लाचार खड़ा कर दिया गया है.
दरअसल, भारत की जनता और समूचे भारत को दमन, अत्याचार, अन्याय, झूठ और कुचक्र ने घेर लिया है. वे जो पुलिसकर्मी हैं, वे भी इसी से घिरे हैं. हम सब बुरी तरह घिर चुके हैं.
(यह लेख पत्रकार कृष्णकांत की फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है)