एंकर चीख चीखकर कह रहा है कि बस एक्शन होने ही वाला है. पुलिस भी इतनी बेताब नहीं एक्शन करने के लिये जितना बेताब एंकर/एंकरायें हो रहे हैं.

मीडिया चैनल अब दंगाई भीड़ तो पैदा कर ही रहे हैं साथ ही ये खुद मॉब बन चुके हैं जो कत्ल कर देना चाह रहे हैं हर उस शख़्स का जो सिस्टम के ख़िलाफ़ है.

हुआ कुछ नहीं लेकिन मारो-मारो, काटो- काटो का शोर मचाकर एक ही बात को बीस बार चीख चीखकर ऐसा भयावह माहौल बनाया जा रहा है जिसकी जद में जो भी अतिवादी दिमाग़ आ रहा है वो मरने मारने पर उतारू हो जा रहा है.

एक बात तो अब स्पष्ट हो चुकी है कि सरकार बहुत बुरी तरह दबाव में आ चुकी है अब तक के आन्दोलन से और हर मुमकिन कोशिश करने के बाद भी आन्दोलन इंच भर पीछे नहीं हटा है.

जिन लबड़ों को ये समझ नहीं आ रहा था या उनकी फट रही थी ये कहने में कि वो किधर हैं वो किसान मार्च के बाद बेहयायी पर उतर आये हैं और फ़र्ज़ी तर्क जा रहे हैं.

आन्दोलन के प्रति राकेश टिकैत की दृढ़निष्ठा और ईमानदारी ने अपना काम कर दिया है कुछ ही घंटो के भीतर देश भर में तमाम विपक्षी पार्टियों सहित आम जनता में भी किसान आन्दोलन और ख़ासकर राकेश टिकैत के प्रति सहानुभूति और समर्थन की लहर दौड़ चुकी है.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई गाँवों में किसान नेताओं और तमाम पंचायतों के प्रतिनिधियों का बीच बैठकें शुरू हो चुकी हैं ताकि और ज़्यादा संख्या में किसानों को ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर इकठ्ठा किया जा सके.

ये आन्दोलन और इसकी चेतना बहुत क्रांतिकारी और ऑरिजनल है,किसानों को पता है कि उन्हें क्या चाहिये और क्यों चाहिये वो उनके लिये कितना ज़रूरी है इसीलिये लड़ाई मरने मारने तक जारी रहेगी.

बाक़ी मीडिया से तो उम्मीद थी भी नहीं पहले और अभी भी नहीं बस एंकरों के हाथ में माइक अब ख़ंजर की तरह नज़र आने लगा है जिससे वो खुद भीड़ को मार रहे हैं और खून से सने हाथों से कीबोर्ड पीट रहे हैं. और ये सिर्फ़ रोटी और पेट के लिये नहीं हो रहा है.

दरअसल इनकी परवरिश और चेतना का निर्माण भी उसी दंगाई और साम्प्रदायिक परिवेश में हुआ है जहां किसी और लंपट का. बस फ़र्क़ इतना है कि एक माइक के हमला कर रहा है एक तलवार और लाठी से.

(यह लेख देवेश मिश्रा की फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here