सिद्धार्थ रामू

आधुनिकाल में जिस व्यक्तित्व ने गांधी को सबसे निर्णायक बौद्धिक और नैतिक चुनौती दी उनका नाम डॉ. आंबेडकर है, दूसरे शब्दों में कहें तो गांधी के सबसे तीखे आलोचक-विरोधी डॉ. आंबेडकर रहे हैं, लेकिन उन्होंने कभी भी गांधी के शारीरिक खात्में के बारे में सोचा भी नहीं, बल्कि उनकी मृत्यु पर शोक ही मनाया। मारने को कौन कहे, मारने बारे में सोचने को कौन कहे, जब गांधी की जान बचाने का समय आया (संदर्भ दलितों के लिए पृथक निर्वाचन मंडल के खिलाफ गांधी का आमरण अनशन) तो दलितों के लिए हासिल सबसे बड़ी राजनीतिक उपलब्धि को भी दांव पर लगाकर डॉ. आंबेडकर ने गांधी की जान बचाई। (पूना पैक्ट, 1932)

इसके विपरीत सावरकर के अनुगामी और हिंदू राष्ट्र को अपना आदर्श मानने वाले वाले हिंदू धर्म रक्षा की भावना से प्रेरित गोडसे, सहिष्णु और सर्वधर्म समभाव के हिमायती और नरम हिंदू माने जाने वाले गांधी की हत्या करने में थोड़ा भी नहीं हिचका और गांधी की न केवल बर्बर तरीके से हत्या किया,  बाद में भी उसे जायज भी ठहराया ( गांधी बध क्यों ?) और उस पर गर्व महसूस करता रहा है।

प्रश्न यह है कि इन तरह की दो दृष्टियों के स्रोत कहां है?

नाथूराम गोडसे जैसे हिंसक हिंदू होने के स्रोत हिंदू धर्म, हिंदू धर्मग्रंथों और महाकाव्यों में हैं। भारत में जान लेने यानि हत्या को सारे हिंदू धर्मग्रंथ और महाकाव्य जायज ठहराते हैं, जिसमें चारो वेद, 18 पुराण और 18 स्मृतियां, वाल्मीकि रामायण, महाभारत और रामचरित मानस जैसे महाकाव्य और तथाकथित हिंदुओं का सबसे मान्य दार्शनिक ग्रंथ गीता भी शामिल है। यहां तक स्वयं हिंदुओं के सबसे बड़े अराध्य मर्यादा पुरूषोत्तम शंबूक की वर्ण- व्यवस्था का उल्लंघन करने पर (शूद्र) हत्या अपने हाथों से करते हैं।

अकारण नहीं है कि हिंदू राष्ट्र की स्थापना में लगे आरएसएस और उसके आनुषांगिक संगठनों के लोगों की हत्या करने, जिंदा जलाने और बलात्कार करने में थोड़ी भी हिचक नहीं होती है और इसे जायज भी ठहराते हैं- जैसे गुजरात नरसंहार (2002), मुजफ्फर नगर दंगे (2013) और दिल्ली में हिंदुओं का तांडव (2020) और मांब लिंचिंग या हाथरस के बलात्कारियों के पक्ष में खड़े होना जाना।

इसके विपरीत परंपरा बहुजन-श्रमण परंपरा है, जिसका केंद्र बौद्ध धम्म है। गोडसे हिंदू धर्म से प्रोत्साहित और प्रेरित था, जबकि डॉ. आंबेडकर बौद्ध धम्म, उसके मूल्यों के साथ आधुनिक लोकतांत्रिक मूल्यों से प्रेरित थे।

हिंदू धर्म के मूल में हिंसा और हत्या है। उसके सारे धर्मग्रंथ और महाकाव्य इसके प्रमाण हैं, हिंदुओं के सारे ईश्वर और देवी-देवता हथियार बंद हैं। इस परंपरा ने गोडसे को एक हत्यारे में तब्दील कर दिया।

बौद्ध परंपरा और मूल्यों ने डॉ. आंबेडकर को मानवीय और सहिष्णु बनाया। उन्होंने दलितों के लिए हासिल राजनीतिक उपलब्धियां दांव पर लगाकर भी गांधी की जान बचाई, जबकि हिंदू धर्म और हिंदू राष्ट्र के सपने से ओत-प्रोत गोडसे ने गांधी की हत्या कर दी।

हिंदू धर्मग्रंथ हिंसक और अमावनीय बनाते हैं और असमानता (वर्ण-जाति व्यवस्था) के पोषक हैं, इसी तथ्य को ध्यान में रखकर डॉ. आंबेडकर ने लिखा-

आप को यह भूलना नहीं होगा कि अगर आप इस व्यवस्था को कहीं से भी भंग करना चाहते हैं, तो आप को वेदों और शास्त्रों में डायनामाइट लगा देना होगा, जो तर्कसंगतता की किसी भी भूमिका का निषेध करते हैं; आप को श्रुतियों और स्मृतियों के धर्म को नष्ट कर देना होगा। और कोई भी उपाय काम नहीं करेगा। (आंबेडकर, जाति का विनाश, फारवर्ड प्रेस )

हिंदू धर्म के और उसके धर्मग्रंथों की अध्यात्महीनता, पाखंडी, हिंसक और हत्यारे चरित्र को तथ्यों-तर्को के साथ डॉ. आंबेडकर ने अपनी किताब ‘हिंदू धर्म की पहेलियां’ ( 1954-55 में लिखी गई) में विस्तार से उजागर किया है।

बहुजन-श्रमण पंरपरा एक मानवीय परंपरा है और हिंदू धर्म द्वारा पोषित ब्राह्मणवादी परंपरा एक अमानवीय परंपरा है।

(व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं)

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