मनमोहन सरकार पर आरोप लगता था कि सरकार पॉलिसी पैरालिसिस का शिकार है. लेकिन क्या मनमोहन सिंह सरकार की वजह से कोई ऐसी घटना हुई थी जहां कोर्ट को कहना पड़े कि यह नरसंहार से कम नहीं है?

जो लोग तब सवाल उठाते थे, वही लोग आज ये नहीं कह पा रहे हैं कि मौजूदा सरकार ‘पॉलिसी डिजास्टर’ का शिकार है.

हालात ये है कि दूसरे देशों में रहने वाले भारतीय मदद भेजना चाह रहे हैं तो उन्हें क्लियरेंस नहीं मिल पा रही है. आरोप है कि क्लियरेंस प्रॉसेस और इंटीग्रेटेड गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स रेट (IGST) के चलते मदद भेजने में मुश्किल हो रही है.

द स्क्रॉल ने 3 मई को खबर छापी: ‘पिछले पांच दिन में दिल्ली में 300 टन इमरजेंसी कोविड सप्लाई पहुंची, वह कहां है?’

खबर में कहा गया है कि पिछले पांच दिनों में पूरी दुनिया से दिल्ली में 25 फ्लाइट पहुंचीं, जिनमें 300 टन इमरजेंसी कोविड सप्लाई भारत पहुंची है. इनमें 5,500 आक्सीजन कंसंट्रेटर, 3,200 आक्सीजन सिलेंडर और 1,36,000 रेमिडेसिविर इंजेक्शन हैं.

इनकी मदद से जिंदगियां बचाई जा सकती हैं. लेकिन एयरपोर्ट से कुछ ही दूरी पर मौजूद अस्पतालों में लोग आक्सीजन के बिना मर रहे हैं.

दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य निदेशक ने बताया कि हमें तो अब तक कोई मदद नहीं मिली है. ये सप्लाई केंद्र सरकार के अनुरोध पर आई हैं और इनकी सप्लाई भी केंद्र को करनी है. लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है. क्या कोई सवाल पूछेगा कि ऐसा क्यों हो रहा है?

मनमोहन सरकार ने आरटीआई, राइट टू एजूकेशन, राइट टू फूड, लोकपाल और ऐसे कई अच्छे कानून दिए थे, फिर भी वह पॉलिसी पैरालिसस का शिकार कही जाती थी.

उस वक्त पॉलिसी पैरालिसिस की बातें करने वाले पत्रकार आज ये क्यों नहीं कहते कि मौजूदा ‘मजबूत’ सरकार तो ‘पॉलिसी डिजास्टर’ का शिकार है?

यह पहली सरकार है जिसके नीतियां बनाने से तमाम लोग यूं ही मर जाते हैं और नीतियां न बना पाने से भी तमाम लोग मर जाते हैं. नोटबंदी हुई तो सैकड़ों लोग लाइन में लगकर मरे. आर्थिक फैसलों की वहज से करोड़ों लोग बेरोजगार हुए.

बेरोजगारी बढ़कर 50 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई. अर्थव्यवस्था माइनस में चली गई. लॉकडाउन में लोग पैदल चलकर मरे. अब लोग अस्पताल, आक्सीजन और दवाई बिना मर रहे हैं.

हैरत है कि मनमोहन सिंह पर तीखे सवाल पूछने वाले वही वीरबहादुर पत्रकार मौजूदा सरकार पर खामोश हैं. कांग्रेस सरकार होती तो अब तक हर तरफ से इस्तीफा मांगा जा रहा होता और कम से कम निठल्ले स्वास्थ्य मंत्री का इस्तीफा हो चुका होता.

आज कोर्ट तक कह रही है कि अस्पतालों में ऑक्सीजन के बिना मरीजों की जान जा रही है, यह एक आपराधिक कृत्य है और यह नरसंहार से कम नहीं है.

इस नरसंहार की जिम्मेदारी क्यों नहीं तय हो रही है? इस नरसंहार के लिए कौन ​जिम्मेदार है? उस नरसंहारक को यह देश क्यों ढो रहा है?

इस नरसंहार की जिम्मेदारी लेते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तुरंत पद छोड़ देना चाहिए. वे एक नाकाम और नकारा प्रधानमंत्री साबित हुए हैं जिसकी अगुवाई में हर दिन हजारों जानें जा रही हैं. कोरोना प्राकृतिक आपदा है लेकिन अस्पतालों में बुनियादी संसाधन न होना भी प्राकृतिक आपदा नहीं है. यह सरकार की नाकामी है. ये सरकारी नरसंहार है.

(यह लेख पत्रकार कृष्णकांत की फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है)

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