कोरोना योद्धाओं का हौसला बढ़ाना था. दिल्ली पुलिस ने आशा कार्यकर्ताओं के खिलाफ एफआईआर करके उनका हौसला बढ़ा दिया है. आशा कार्यकर्ताओं का अपराध था कि उन्होंने सुरक्षा उपकरणों की मांग को लेकर प्रदर्शन किया.

अब कोई नेता उन्हें देशद्रोही कह दे तो ‘न्यू इंडिया’ की देशभक्ति का कर्मकांड पूरा हो जाए.

आशा कार्यकर्ता फ्रंटलाइन वर्कर हैं. करीब 150 आशा कार्यकर्ता कोरोना संक्रमित पाई जा चुकी हैं. उनकी मांग है कि हमें पीपीई किट, मास्क, दस्ताना, सैनिटाइजर वगैरह दिया जाए और मानदेय बढ़ाकर दस हजार रुपये किया जाए.

आशा कार्यकर्ताओं को 3000 रुपये महीने दिया जाता है और मिला-जुलाकर करीब हजार रुपये महीने इनसेंटिव मिल जाता है. पूरी महामारी के दौरान वे फील्ड में रही हैं. उन्हें घर-घर जाकर सर्वे करना होता है. महामारी में उन्हें मरीजों को कोरंटाइन करने से लेकर मरीजों को दवाई और सुविधा पहुंचाने के काम में लगाया गया. दिल्ली जैसे शहर में किसी को अगर दस हजार रुपये भी नहीं मिलता है तो सोचिए उनकी दाल-रोटी कैसे चलती होगी?

इन आशा कार्यकर्ताओं ने 9 अगस्त को अपनी मांगों को लेकर जंतर-मंतर पर प्रदर्शन किया था. दिल्ली पुलिस ने उनके खिलाफ डिजास्टर मैनेजमेंट के तहत लॉकडाउन नियमों का उल्लंघन करने के लिए केस दर्ज कर दिया है.

दिल्ली राजधानी है. यहां 5000 महिलाओं को अमानवीय परिस्थितियों में काम पर लगाया गया, उन्हें खाने भर का पैसा भी नहीं दिया जा रहा, उन्हें कोई सुरक्षा उपकरण नहीं दिया जा रहा. सुरक्षा मांगने पर केस दर्ज कर दिया जा रहा है.

आशा कार्यकर्ताओं का आए दिन प्रदर्शन होता रहता है, लेकिन मैंने नहीं देखा कि कभी मीडिया ने, सरकार ने या जनता ने कोई लोड लिया हो.

हमारी देशभक्ति का मतलब बस इतना है कि हम निजी तौर पर खुश रहें, किसी की चमचागिरी करते रहें और निर्बाध नफरत फैलाते रहें. इसमें बाधा आए तो परेशानी है, वरना सब चंगा सी. अद्भुत है भाई!

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